गुण्डों का घर-द्वार….
गुण्डों का घर-द्वार हो गई.
राजनीति व्यापार हो गईं.
शोषण इतना हुआ जिंन्दगी-
कैक्टस- झाड़ी- खार हो गई.
बहुजनों के जनमत की अब-
देश में भारी हार हो गई.
बेईमानी और झूठ देश में-
सत्ता का आधार हो गई.
अभावों में पली जिंदगी-
दुःखी- विवश -लाचार हो गई.
मौजूदा सरकार में ग़लती-
एक नहीं कई बार हो गई.
सही जनता को आज देश में-
ग़लत बात स्वीकार हो गई.
करी-कराई जीवन-भर की-
मेहनत सब बेकार हो गईं.
-डॉ सुरेश उजाला