Wednesday, May 15, 2024
साहित्य जगत

गुण्डों का घर-द्वार….

गुण्डों का घर-द्वार हो गई.
राजनीति व्यापार हो गईं.

शोषण इतना हुआ जिंन्दगी-
कैक्टस- झाड़ी- खार हो गई.

बहुजनों के जनमत की अब-
देश में भारी हार हो गई.

बेईमानी और झूठ देश में-
सत्ता का आधार हो गई.

अभावों में पली जिंदगी-
दुःखी- विवश -लाचार हो गई.

मौजूदा सरकार में ग़लती-
एक नहीं कई बार हो गई.

सही जनता को आज देश में-
ग़लत बात स्वीकार हो गई.

करी-कराई जीवन-भर की-
मेहनत सब बेकार हो गईं.

 

-डॉ सुरेश उजाला