Saturday, May 4, 2024
साहित्य जगत

अधखुली पलकें

अर्ध प्रहर
गई रात में
औचक से….
निद्रा भंग हुई।

गीला तकिया देख
विस्मित थी…?
निद्रा भंग हुई थी
या कि..
सपने टूटे थे?

मंथन चल रहा था
चक्रवात सा
विचलित , भयग्रस्त
और
हतोत्साहित करता
कुछ प्रश्न….?

अश्रु में प्रवाहित हो
सपने बह गए थे…
या कि अभिलाषाएं
या फिर…..??

तेरे-मेरे
युगल तत्त्वाधान में
उरात्मा द्वारा निर्मित
देवालय भरभराया था?

कुछ तो टूटा था..
संभवतः हमारे मध्य
विश्वास का बांध…??

जो अधखुली पलकों पर
अपूर्ण सपने…
बह गए थे…
बाढ़ के प्रवाह में

और! सपने..,
अधूरे रह गये
अलसाई अधूरी
पलकों पर…!!

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)