Friday, May 24, 2024
साहित्य जगत

बारिश की बूंदें

बारिश की बूंदें ! गिरती तो है ,
धरती की प्यास बुझाने को..
किन्तु! जीव, जन्तु,पशु,पक्षी
पेड़- पौधे, नदी -नाले सभी को
तृप्त कर जाती, धरती हरी -भरी
कर जाती है……
मानव मन को छू ,जाती है;
नई उमंग भर जाती है…
जीने की राह बताती है
और जीवन सबको दे जाती है,
किन्तु! वही बारिश जब!
अति वर्षण का रूप धर
तबाही मचाती है……
जने कितने?जीवन लील जाती है;
लोगों ठौर- ठिकाने छीन ले जाती है,
फसलों को बहा ले जाती है…..
मुह के निवाले छीन ले जाती है;
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में भुखमरी
फैलाती है,नई बीमारी का रूप धर
नए- नए रोग फैलाती है…..
एक तरफ बरखा रानी बन..
सभी को खुशियां दे जाती है तो
दूसरी तरफ़ भयावह रूप धर
तबाही मचाती है…………..
जाने क्या- क्या रंग दिखाती है,
बूंदें, बारिश, फुहार जब बन
कर आती है……..!!!!!!

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)