Sunday, May 5, 2024
साहित्य जगत

व्यथा (कविता)

लिख डालो व्यथा
अपने अंतर्मन की
जो व्थित करती हो
तन को ,मन को
कचोटती हो हृदय को
कुरेदती हो कई घाव
टूटते सपनों को
समेट लो शब्दों के समूह से
मनकों की माला बना
श्रद्धांजलि मत दो….
अरमानों को ,दिवंगत बना;
जी लो हर पल को, ऐसे;
जैसे चांदनी हो अपनी
तरूणायी पर…….
जैसे भानु हो अरूणायी पर
जैसे विहगों का कलरव
नवोदित परिणीता की भांति
सागर सदृश,अथाह अनंत
अनल, वायु प्राण सम
परित्यक्त विष हो, पीयूष हो ग्राह्य
विकल वेदना जब हो अथाह
लिख डालो !
मन का विकार
लिख डालो!
भावनाओं का
कल्पनाओं का
व्यवस्थाओं का संस्थाओं का
समस्त संसार !!!

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)