Sunday, May 12, 2024
बस्ती मण्डल

अध्यापक किताबें पढ़ते-पढ़ाते हैं, कभी बच्चों का चेहरा पढ़ें, मन पढें तो पता चलेगा कि अभी बहुत कुछ पढ़ना बाकी है..

*स्कूल अच्छा परीक्षा-परिणाम दे सकते हैं, क्या वे स्कूल बच्चों के चेहरे पर मधुर मुस्कान बिखेर सकते हैं??यदि नहीं तो उनका वह परीक्षा-परिणाम किसी मतलब का नहीं-दीपिका तिवारी

आज बच्चे माता-पिता और शिक्षकों से क्यों दूर होते जा रहे हैं?? उनसे अपने मन की बात क्यों नहीं कर पाते ?? यह दूरी निरन्तर क्यों बढ़ती जा रही है? क्यों बच्चे डिप्रेशन में जा रहे हैं?? बच्चों के लिए काउंसलर की जरूरत क्यों पड़ रही है?? अपनापन बेगानेपन में क्यों बदलता जा रहा है?? यह कुछ प्रश्न आज हम सबके सामने खड़े हैं। हमें इसका उत्तर तुरन्त खोजना है। सेन्ट्रल एकेडमी स्कूल के प्रिंसिपल दीपिका तिवारी ने कहा कि अध्यापक किताबें तो पढ़ते-पढ़ाते हैं वे कभी बच्चों का चेहरा पढ़ें, मन पढें तो पता चलेगा कि अभी बहुत कुछ पढऩा बाकी है। पढ़ाने की तो बात ही छोड़िए अगर पढ़ने वाला ही तैयार न हो तो कोई भी कुछ नहीं पढ़ा सकेगा। बड़े से बड़े टीचर या प्रोफेसर भी पढ़ा नहीं सकेंगे। और यदि पढ़ने वाला खुश है, दिल से पढ़ने को तैयार है तो कम से कम समय में उसे काफी कुछ पढ़ाया जा सकता है। स्कूल अच्छा परीक्षा-परिणाम तो दे सकते हैं, क्या स्कूल बच्चों के चेहरे पर मधुर मुस्कान बिखेर सकते हैं?? यदि नहीं तो उनका वह परीक्षा-परिणाम किसी मतलब का नहीं। बच्चे किसी भी स्वस्थ समाज की सबसे बड़ी धरोहर है। यदि हम अच्छे समाज और देश का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें मिलकर बच्चों पर ध्यान देना होगा। बच्चों को क्या अच्छा लगता है, क्या नहीं, टीचर्स और पैरेंट्स को यह जानना होगा। उनके मालिक नहीं दोस्त बनना होगा, पढ़ाई के साथ साथ उनकी खुशी का ध्यान रखना होगा, उनकी बात को ध्यान से सुनना होगा, अच्छे संस्कार देने होंगे,अच्छी किताबें पढ़ने, क्रिएटिव एक्टिविटीज करने और खेलने के लिए उनको मोटिवेट करना होगा।
याद रखें सफल इंसान खुश रहे या ना यह नहीं पता, पर खुश रहने वाला इंसान सफल जरूर होता है। इसलिए जरूरत है हम सबको कि हम बच्चों के चेहरों पर मधुर मुस्कान लेकर आएं, उनको हंसना सिखाएं।