Saturday, May 4, 2024
साहित्य जगत

मैं भी मजदूर हूं

करती हूं साहब!
क़लम की मजदूरी,
पेट नहीं भरता,
ना ही, पैसे कमा पाती,
किन्तु!
लिख पाती हूं,
हृदय के उद्गार,
मन के भाव,
कुछ सामाजिक
प्रवंचना!
दुसरों की व्यथा,
पीड़ा, दर्द और –
खुशियां, प्रेम,विरह
श्रृंगार, वात्सल्य
यौवन और ज़रा
बस!
लेकिन नित्य कर्म
में निरत,
विप्लव की आंधी
भूख का ज्वार,
ग़रीबी की उधड़न
महंगाई की मार,
दिमाग़ी बीमार
कुछ उल- जलूल
शब्दों की हेरा -फेरी
कर, करती हूं मजदूरी
क़लम की!
क्यों कि……
मैं भी तो मजदूर हूं!

आर्यावर्ती सरोज “आर्या
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सोमवार/ १/५/२०२३