Saturday, May 18, 2024
शिक्षा

अख्नाटन के धार्मिक विचारों पर प्रकाश डालिए । ■इतिहास■ (सिद्धार्थ विश्वविद्यालय)

प्रारम्भ में मिश्र के ओमेनहोतेय चतुर्थ नामक धर्म सुधारक ने उदारता एवं धर्म सहिष्णुता का परिचय दिया, लेकिन जब परम्परागत धार्मिक विश्वासों एवं उपासना पद्धतियों के स्थान पर नवीन देवता एवं उससे सम्बन्धित मान्यताओं को प्रतिष्ठित करने में इसे सफलता न मिली तो इसने अपना मार्ग बदल दिया। प्राचीन धर्म एवं अभिचारिक क्रियाओं के विरोध के कारण पुजारी असन्तुष्ट हो गए तथा संगठित होकर इसका विरोध प्रारम्भ कर दिए। इससे ओमेनहोतेय चतुर्थ का रहा-सहा धैर्य भी टूट गया। धर्म सुधार की प्रबल प्रेरणा एवं आतोन के प्रति अंध भक्ति के कारण यह अत्यन्त क्रूर बन गया। इसने घोषणा कर दी कि आतोन के अतिरिक्त अन्य देवता का नाम जहां कहीं भी मिले उसे नष्ट कर दिया जाय । अतः ऐसे देवनाम जहां कहीं भी मिले उसे उड़ा दिया जाय। सैकड़ों स्मारकों पर खुदे पिता का नामांश ‘आमेन’ शब्द को भी मिटा दिया गया। आमोन देवता से इसे इतनी घृणा तथा आतोन से इतनी अधिक आत्मीयता हो गई कि इसने स्वयं अपना नाम बदलकर ‘इख्नाटन’ अथवा ‘अखनाटन’ धारण कर लिया, जिसका अर्थ है ‘आतोन की आत्मा’ या ‘आतोन सन्तुष्ट है।’ बाद में यह धर्म सुधारक विश्व इतिहास में इसी नाम से प्रसिद्ध हुआ । केवल इसके धर्म को छोड़कर शेष अन्य धर्मों को गैर कानूनी घोषित किया गया । आमोन के सभी मन्दिर बन्द कर दिए गए तथा वहां के पुजारियों को बहिष्कृत कर दिया गया। आमोन देवता के मंदिरों की सारी संपत्ति जब्त कर आतोन के मंदिर को दे दी गई तथा आमेन के पुजारियों को यह आदेश दिया गया कि वे या तो आतोन का अपना अभीष्ट देवता मान ले या फिर मिश्र को छोड़कर चले जाय। इस प्रकार अख्नाटन ने एक बहुत तार्किक धार्मिक सिद्धान्त का प्रतिपादन कर विश्व के इतिहास में अपना कीर्तिमान स्थापित कर लिया।

यह इतिहास का दुर्भाग्य है कि इख्नाटन द्वारा स्थापित एकदेववाद स्थायी सिद्ध न हुआ। इसके अगले उत्तराधिकारी तूतनखाटेन के सिंहासन सम्भालते ही पुजारियों ने इस पर प्रभाव जमा लिया। दुर्बल तूतनखोटन उनके प्रभाव में आकर पुनः मन्दिरों तथा पुजारियों में समझौता कर प्राचीन देवता आमोन को पुनः प्रतिष्ठित कर दिया। आमोन के साथ उन सभी देवताओं की पूजा फिर से प्रारम्भ की गई जिन्हें अख्नाटन के समय उपेक्षित कर दिया गया था। अपने देवता की स्थापन में जो व्यवहार इख्नाटन ने अन्य देवताओं के साथ किया था, ठीक वही व्यवहार तूतनखाटेन ने आतोम देवता के साथ किया। इसने भी आतोन और उससे सम्बन्धित नामांशों को नष्ट करवा दिया। स्वयं अपना नाम बदलकर तूतनखानेन रख दिया।

अब प्रश्न यह है कि इख्नाटन का धर्म उतनी शीघ्रता से क्यों विलुप्त हो गया ? यदि तत्कालीन परिस्थितियों एवं उसके सुधारों को परस्पर ध्यान में रखते हुए इस पर विमर्श करें तो इसका कारण अज्ञात नहीं रह जाता । वास्तव में इसके लिए इख्नाटन स्वयं उत्तरदायी था । इख्नाटन में न तो विचारप्रौढ़ता थी, न दूरदर्शिता। यदि ये दोनों गुण इसमें होते तो निश्चित तौर पर समझ जाता कि जनता की आदतों एवं आवश्यकताओं में गहराई से जड़ जमाए बहुदेववाद को समाप्त कर जिस एकेश्वरवाद की स्थापना वह करना चाहता था, उसे इतने कम समय में, इतनी आसानी से स्थापित नहीं किया जा सकता था। लेकिन अख्नाटन एक दार्शनिक की अपेक्षा कवि अधिक था। यह शीघ्र ही परिवर्तन द्वारा पूर्णता प्राप्त करना चाहता था जो सर्वथा असम्भव था। इख्नाटन धार्मिक चिन्तन के क्षेत्र में अपने समय से बहुत आगे था और मिश्रवासी इसके सिद्धान्तों को समझने में असमर्थ थे। इसी कारण इसका नया धर्म बहुत दिनों तक टिक नहीं सका तथा इसकी मृत्यु के कुछ दिन बाद ही समाप्त हो गया।