Saturday, May 18, 2024
शिक्षा

जिगुरत ■इतिहास■ (सिद्धार्थ विश्वविद्यालय)

सुमेरियन सभ्यता के केन्द्र के नगर थे और नगरों के केन्द्र मन्दिर। सुमेरिन मन्दिर वस्तुतः प्राचीर से परिवेष्टित एक विशाल भवन समूह होता था जिसमें मन्दिर के अतिरिक्त भण्डार-घर तथा कार्यालय इत्यादि भी शामिल रहते थे। इनमें सबसे मुख्य भवन जिगुरत होता था। जिगुरत शब्द का सुमेरियन भाषा में आशय था पर्वत-निवास । इस भवन के निर्माण का मूल कारण सुमेरियनों का पर्वत प्रदेश से सम्बन्धित होना बताया गया है। कुछ विद्वानों का विचार है कि जिगुरत एक प्रकार से स्वर्ग-सोपान थे। अभाग्यवश जिगुरत के पूर्ण अवशेष न मिलने के कारण इसके मूल स्वरूप का ज्ञान केवल अनुमान पर आधारित है। इसलिए इसके मूल आकार-प्रकार के विषय में मतभेद है। कुछ दशक पूर्व परवर्ती बैबिलोनियन युग का एक कीलाक्षर (क्यूनीफार्म) अभिलेख प्राप्त हुआ था जिसमें बैबिलोन के प्रसिद्ध जिगुरत के जो बाइबिल में ‘टावर ऑव बेवल (बैबिलोन की मीनार) के नाम वर्णित है तथा स्वरूप का उल्लेख किया गया है। इस जिगुरत के वर्गाकार आधार और तीन सोपानों के निचले अवशिष्ट भाग का उत्खनन कोल्डीवी नामक विद्वान ने किया। इसके अतिरिक्त एंग्लो-अमरीकी अभियान ने जिसने प्रो० वूली के नेतृत्व में उर नगर की खुदाई की, वहाँ के जिगुरत के अवशिष्ट भागों से दूढ़ निकाला है। इन सभी प्रमाणों का अध्ययन करके कोल्डीवी और वूली ने जिगुरतों के आकार-प्रकार की अनुमानित रूपरेखा प्रस्तुत की है।