Friday, May 24, 2024
साहित्य जगत

व्यंग्य! शिक्षक दिवस हम रोज मनाते हैं

आज आप शिक्षक दिवस मना रहे हैं
या इस दिवस की भी औपचारिकता निभा रहे हैं।
जो भी कर रहे हैं अच्छा कर रहें हैं
हम तो आपकी तरह हैं नहीं
हम तो रोज शिक्षक दिवस मना रहे हैं,
बेशर्मी से मुस्कुरा रहे हैं।
आप भी मुस्करा सकते हैं
यदि मेरी तरह बेशर्म हो सकते हैं,
वरना फासले से रहें
आपका हम कुछ नहीं कर सकते हैं।
अब थोड़ा मेरी ओर ध्यान दीजिए
जो कहता हूँ ध्यान से सुनिए
समझ में आये तो जीवन में उतारिए
माँ बाप को रोज लतियाइए
खरी खोटी बिना बात सुनाइए,
अपने से बड़ों को अपमानित करने का
मौका एक न गंवाइए।
शिक्षक, गुरु की बिसात क्या है?
उनकी औकात क्या है?
उनको रोज रोज बताइए।
मेरी इतनी बात मान लीजिए
जिसनें भी आपको कुछ सिखाया है
उसी पर प्रहार कीजिए,
गुरु दक्षिणा में बस यही सौगात दीजिए।
चाकू कट्टा पर नसीहतें जो दे रहे
उन पर ही चलाकर दिखा दीजिए,
जो गुरू आपको फेल कर दे
ऐसे गुरू पर यार दोस्तों संग
मिलकर हल्ला बोल दीजिए।
क्या गुरू, क्या शिक्षक
वो भी हमारी तरह हाड़ मांस के पुतले ही तो हैं,
कौन सा किसी और दुनिया से आते हैं।
उन्हें बता दीजिए
हम शिष्य जरा दूजे किस्म के हैं,
अपने माँ बाप के चरण तो छूते नहीं हम
तुम्हारे चरण छूकर हम नापाक हो सकते नहीं।
सच कहूँ तो ये ढकोसला बंद कीजिए
जब हम ऐसे ही रोज अपना दिवस
विशेष मना रहे हैं यारों
फिर शिक्षक दिवस मनाकर
अपने दिवस का अपमान क्यों करें?
आइए! जब औपचारिकता ही निभाना है
तो इस बार हम भी मना लेते हैं,
अगले साल से हमारे साथ
आप भी नहीं मनाएंगे
ये शपथ भी आज ही ले लेते हैं,
क्योंकि आपको शायद पता नहीं
तो आज जान लीजिए
शिक्षक दिवस हम रोज, हर समय ही मनाते हैं,
ये अलग बात है हम शिक्षकों, गुरुओं की बात छोड़िये
अपने माँ बाप का भी सम्मान न कर पाते हैं,
मगर इसमें दोष तनिक भी मेरा नहीं है
हम औपचारिकता के बजाय
वास्तविकता में करते हैं,
चोरी, छिपे नहीं खुलेआम करते हैं,
अपने हर काम अपने अंदाज में करते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921