Sunday, May 19, 2024
साहित्य जगत

मैं नारी हूं!

मैं नारी हूं!
शक्ति हूं..
सशक्त हूं
पूर्ण हूं….
परिपक्व हूं
अनुभवी….
अभ्यस्त हूं,

मैं नारी हूं!
पावनी सी
पावन हूं,
जग की..
मनभावन हूं
अग्नि से
परीक्षित हूं,
फिर क्यों ?
उपेक्षित हूं?
सृष्टि हूं…
जननी हूं…
कोख में..
मरूं क्यों फिर?
देह से डरूं
फिर क्यों?

क्यों मैं अभिशापित हूं
जग में क्यों प्रताणित हूं
घर-बाहर देख रही
फिर क्यों भाव-भेद रही
चेहरे पर हंसी लिए
गम और खुशी लिए
कर्तव्य पूर्ण कर
कर्म-पथ चल रही।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)