Saturday, May 4, 2024
साहित्य जगत

कजरी

आओ सखी कजरी गाये रूठे साजन को मनाये। सावन आया खुशिया लाया रिमाझम रिमझिम बरसे फुहार।
उमड़ घुमड़ कर बदरा आते
दादुर मोर पपीहा बोले
कुहू कुहू कूके ये कोयलिया
हो रामा —

मन मोरा तरसे पिया की दरश को ,
पिया आके झलक दिखा जाना।
अबकी सावन मोहे मत तरस इयो।

बाबुल ने भेजा संदेशा लाडो अगंना करे इंतजार,
भाभी ने भेजी सुहाग की डाली,
जीजी जल्दी आओ मेहदी
को है तेरा इंतज़ार,
सबको है जीजी बस तेरा ही इंतजार।

कर याद बाबुल का दुलार एक सुंदर पौध लगाये ।
संग बैइठ आओ सब मंगल गाये,आओ सखी कजरी गाये।

हाथो मे मेहंदी रचाये माँ की सुगंध उसमें बसायें ,
भर नयनो में नीर उनकी यादो मे खो जाए ,
आओ सखी झूला झूले।

पकड़ भइया का हाथ याद हम बचपन दिलाये,
उनकी कुशल मनाये,
रिश्ता ये अलबेला उम्रभर है निभाना ये भइया को बतायें।
आओ सरवी कजरी गाये।

भाभी करे मनुहार माँ उतारे बलइया मोरा मन मयूर नाचे ताता थइया ।

आओ बदले कुछ लोकाचार,
मत भेजिहो घेवर, गुझिया, मेहंदी सिंधारा इस बार
अबसे भेजिहो माई मंगल कामना आशीष भरी
बना रहे सौभाग्य हमारा
बस देना सदा आशीष यही
आओ सखी कजरी गाये।

झूले के पेगो को दिल
से बढ़ाये
चलो करे साजन से बातिया ऊँची पेंगो के लिए
सजना जरा प्यार की पेंग बढ़ाना।
आओ सखी कजरी गाये।

जीवन रहता नहीं एक सा , सुख दुःख लगा रहता सदा आज ले लो माँ का प्यार
भर लो बाबुल के प्यार से अपनी झोली ,
अगले बरस सासु से लाड़ लगाना।
आओ सखी कजरी गाये।
दोनों घरों का ख्याल तू रखना,
बरसों बरस तीज तुम मनाना ,
रहे महकता प्यार हमारा आओ सखी काजल लगाए
झूमे नाचे गाए खुशियां मनाएं कर सोलह श्रृंगार
स ईया को रिझाये।
अलबेला सावन आया खुशियां हजारी लाया।
बरसे गगन से प्यार ही प्यार
हो रामा
धरती बनी रहे दुल्हन हो रामा
ओढ़े धानी चुनर हो रामा
आयी सावन की बेला
छायी काली घटा
बिजुरी गरजे जियरा धड़के।
विरहन तरसे कासे कहें मनवा की पीर रे हो रामा।
आओ सखी कजरी गाये
रुठे बलम को मनाये।

शब्द मेरे मीत
©डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश