अंतर्मन से जब उसे मैंने….
अंतर्मन से जब उसे मैंने दिया निकाल
अब बोलो क्या करूंगा सुनकर उसका हाल
कब तक पकड़े रहोगे तुम माया की डोर
आओ तम से निकलकर चिर प्रकाश की ओर
समझ रहा था उसे मै अंतर्मन का मोर
पर मेरा दुख देखकर है वह परम विभोर
नफरत तुमसे कर रही है कितनी मगरूर
सबसे बेहतर है यही रहिए उससे दूर
यह है सच्ची साधना यह है सच्ची प्रीत
मीरा ने प्रभु का ह्रदय लिया प्रेम से जीत
डॉ. राम कृष्ण लाल जगमग