Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

मुकम्मल ग़ज़ल पेशे ख़िदमत है॥

ग़ज़ल :–

ज़िन्दगी इस तरह गुज़ारी है
एक पल इक सदी पे भारी है ।

राख को देख कर हुआ महसूस
आग में कितनी पर्दादारी है ।

इक तेरे इंतेज़ार में अब तक
जिस्म साकित है सांस जारी है ।

नोट रिश्तों के ख़र्च कर डाले
पास यादों की रेज़गारी है ।

रूह पर इसका बस नहीं चलता
मौत तो जिस्म की शिकारी है ।

जब ताल्लुक़ नहीं रहा उस से
जाने कैसी ये बेक़रारी है ।

हौसला गर बुलन्द हो तो फिर
इक दिया आँधियों पे भारी है ।

वो तो आँखों मे ख़्वाब छोड़ गया
अब तो नींदों की ज़िम्मेदारी है ।

कोई नशशा असर नहीं करता
इश्क़ में ये अजब खुमारी है ।

वो है रब जानता है सब “नुसरत”
उस से फिर किसी होशियारी है ।

ताल्लुक़… रिश्ता
ख़ुमारी… नशे में होना
साकित… . बेजान

नुसरत अतीक़ गोरखपुरी ।