Sunday, May 5, 2024
साहित्य जगत

इस बार तो आओगे

चलो वो वक्त भी आ गया…
तुम भी आओगे!
बुझे हुए उम्मीद के दिओं को…
आस की वर्तिका से
जगमग कर जाओगे,
वर्षों बाद आना है तुम्हें
क्या? बीते पल को..
भी..साथ लिए आओगे?
दिवारें, खिड़कियां
दरवाजे पंथ हैं निहारतीं,
पल-पल पुरवाई….
तुम्हें है पुकारती,
देहरी पर रखा दिया भी
देख रहा राह तुम्हारा
राह भूले तो नहीं?
अन्यत्र भटक तो नहीं जाओगे?
पथ -पग चल कर…
घर तक तो पहुंच जाओगे?
कहो!
इस बार तो आओगे?

आर्यवर्ती सरोज आर्या

लखनऊ(उत्तर प्रदेष)