Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

बेतुकी आजादी

दुनिया मैंने आज भी बहुत नहीं देखी है ,वही बस अपने शहर आगरा और लखीमपुर की नब्ज को थोड़ा बहुत समझ पाया हूं। आजादी के मायने भी में इन्हीं शहरों के आईने में ही तलाशता हूं। लखीमपुर खीरी के तिकुनियां जै जबसे एक पिछले गरीब कस्बे में मैंने टायर चौराहा से कौड़ियाला घाट वाले रोड पर टायर चौराहा से बस 50 कदम दूर सड़क के किनारे खुले आसमान के नीचे मैंने हमेशा ही छोटे-छोटे चूल्हों पर कुछ चुरते _ पकते देखा है। चूल्हे के आसपास कुछ दूधमुंहे बच्चे तो कुछ साइकिल के टायर _ ट्यूब से खेलते बच्चे देखे हैं। चूल्हे के ऊपर रखी पतीली में क्या है ,यह तो नहीं देखा लेकिन एक मलिन मुरझाई सी औरत चूल्हे के अंदर आंख डाल के बार बार फूंक मारते दिखती थी शायद निराला की “पत्थर तोड़ती हुई महिला” अब धुए से लड़ रही है। खुले आसमान से अगर इन बे आशियाना रूहों पर बादल बरस पड़े तो उस चूल्हे का क्या होता होगा यह मैं कभी नहीं देख पाया । एक दो बच्चियां जमीन पर कुछ लकीर खींच कर कुछ खेल रही होती हैं।

इनके हाथ में खिलौने के नाम पर आम की सूखी हुई गुठली और पत्थर होता है या पत्थर तोड़ने की छैनी अगर आप रुक गए तो हमेशा एक छोटा सा बच्चा आपके पीछे से आपकी पेंट खींचेगा और “बाबूजी कुछ दे दियो” की गुहार लगाएगा आखिर लगाए भी क्यों नहीं पापी पेट का जो सवाल है पलट के देखिए तो उसके चेहरे पर सूखी हुई लार और फैन दिखता है। मंडी समिति के गेट के पास फटे हुए कपड़ों में कौन बच्चे पड़े सोते रहते हैं पता नहीं टेंट/टूटी झोपड़ी में रह रहे यह लोग कौन हैं किसी को नहीं पता इन्हें दो वक्त का खाना मिलता है या नहीं यह किसी को नहीं पता । इन्होंने कब से खाना नहीं खाया है सिर्फ खुदा ही जानता है अगर कोई मनुष्य इन सब को जानता होता तो शायद इनके पास भी रहने के लिए घर होता व पहनने के लिए अच्छे कपड़े होते अगर इनके पास अपना खुद का घर होता तो इन्हें ऐसे ही कोई ट्रक से नहीं कुचल जाता ऐसा ही वाकया मैंने अपनी आंखों से आज देखा है एक ही घर के ममेरे फुकरे भाइयों को रात्रि में किसी ट्रक द्वारा कुचल दिया गया उनकी मां का यह असहनीय दर्द देखते नहीं बनता था। दर्द को भी दर्द हो जाए अगर इनके दर्द को कोई समझे तो। अगर इनके पास घर होता तो उनके लाडले आज रोड के किनारे नहीं सोते और नहीं मारे जाते शायद मुझे लगता है सरकार के द्वारा चलाए जा रहे आवास योजनाएं केवल एक दिखावा मात्र है या फिर हवा – हवाई है जनप्रतिनिधियों को केवल चुनाव के समय ही याद आती है इन लोगों की।

आजादी के संघर्ष का लखीमपुर की धरती से भी नाता रहा होगा देश की अन्य जगहों का तो नहीं पता लेकिन तिकुनिया जैसे कस्बे में आज भी आजादी की तस्वीर ऐसी ही है। यह जानते हुए भी कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं मैंने यहां के बच्चे इसी हालत में देखें हैं। बात नजरिए की भी है शायद मेरा नजरिया गलत हो हां लेकिन नकारात्मक बिल्कुल नहीं है सकारात्मक ही है।।

हरिकांत वर्मा
ग्राम चरीपुरा फतेहाबाद आगरा( उ. प्र)
मोबाइल नंबर 9411465328