हिंदी पखवारे में एक ग़ज़ल..
ये हमारी प्यास का विस्तार है
होंठ छूने को विकल जलधार है
पार कर लेगा वो रिश्तों की नदी
पास जिसके प्यार की पतवार है
आपके आगे दलीलें क्या रखूँ
आपका हर फ़ैसला स्वीकार है
उसको ख़ुश रखना ही है हर हाल मे
नाम इस अहसास का ही प्यार है
तेज़ मद्धम उल्टी सीधी ग़ोल ग़ोल
ज़िन्दगी क्या है नदी की धार है
बबलू गुड़िया उनकी मम्मी और मै
बस यही इतना मेरा संसार है
हरीश दरवेश
बस्ती (उत्तर प्रदेश)