Sunday, June 23, 2024
साहित्य जगत

मिट्टी….

मिट्टी रानी तुमसा,बनना चाहूँगी।
हवा,पानी,सूरज,चाँद तो सब बनते पर,

मैं बनना चाहूँगी तुमसा।
हाँलाकि,तुम्हारे प्रकार बहुत पर,स्वभाव एक सा कभी बदलता नहीं।
बीज को पेड़,
कचरे को हरियाली मेढ़।
घर को मंदिर।
वन को सुंदर।
पक्षियों का सहारा।
नदियों का किनारा।
बाप को जायदाद।
पुरखों को आबाद।
कुम्हार की चाक।
गुरू की आँख।
प्रेयसी की जान।
प्रेयस का सम्मान।
इंसान को राख।
और राख को खाक में तब्दील करती हो।
तार देती हो सभी को,अपनी बाँहों में भर।
तुम औरत जाति में अकेली,जो कभी भी किसी का बुरा नहीं चाहती।
निश्छल,निर्मल,शीतल।
त्याग करती स्वयं का,दूसरों को खुशहाली देने के लिए।
आखिर में तुम भी तो ऐसे ही हो,हँसना हर परिस्थिति में स्वयं का अस्तित्व समाप्त कर।
बस तुमसा और बिल्कुल वैसी-जैसी तुम हो।

दीक्षा सविता
पोस्ट-पिहानी,जिला-हरदोई
उत्तर प्रदेश
पिन कोड-241406