Friday, June 28, 2024
साहित्य जगत

नवल पुष्प नव गात चमन में…

नवल पुष्प नव गात चमन में,

नव कलियां मुसकाई हैं।
अधरों पर ले प्रणय गीत ,
फिर से वसंत ऋतु आयी है।

थिरक रही मरुभूमि आज,
नव किसलय की हरियाली है
डाल डाल रसवंती झूमें,
दिग दिगंत खुशहाली है।

घूम घूम अलि चूम रहा,
कलिका फिर से शरमाई है।
अधरों पर ले प्रणय गीत,
फिर से वसंत ऋतु आती है।

प्रेम राग कोयल है गाती,
मन अनुराग जगाती है।
मंद मंद बहकी बयार,
सुरभित पराग फैलाती हैं।

मीत मिलन की आश उठी
तन मन खुमार लेे आयी है।
अधरों पर ले प्रणय गीत,
फिर से वसंत ऋतु आयी है।

अरुणिम आभा है विहान की,
तुहिन बिंदु कण-कण चमकाती।
हरित हुए खलिहान मुदित हैं,
फूली सरसों है इठलाती।

मधु ऋतु है रसबोर बसंती
पोर – पोर अंगड़ाई है।
अधरों पर ले प्रणय गीत,
फिर से वसंत ऋतु आयी है।

सीमा शुक्ला
अयोध्या(उत्तर प्रदेश)