Sunday, May 19, 2024
साहित्य जगत

कोख से जिसकी जन्म लिया….

दिल्ली कभी हुआ करती थी दिलवालों की शान रे
आज हुई है दिल्ली, देखो,बिल वालों की जान रे

किस किस को समझाऊँ जाके कोई तो ये मान ले
मुद्दा नाहीं देश का देखो राजनीतिक ये अभियान रे

आज हमें भी हुआ अपने अन्नदाता पे गुमान रे
स्तेमाल करने वालो से अन्नदाता अनजान थे

नकली ने असली की अपनी ढक दिया पहचान रे
गुमराह होकर कइयो देखो पहुँच गये शमशान रे

कोख से जिसकी जन्म लिया माँ बाप भी किसान थे
माँ भारत की बेटी मेरा पिता हैं हिंदुस्तान रे

नमक खाय कर खून बहादूं देकर अपनी जान रे
सरिता तन मन धन से करदे खुद को भी कुर्बान रे

मिटने ना देगी हस्ती भी अपने देश महान की
उसमें सरितायें भी बहकर रहतीं बस पहचान से

दर्द समेंटे बोझ सहें पर कहें ना कुछ जुबान से
धर्म जाति कोई देश ना देखें प्यास बुझातीं प्यार से

सरिता सदा बहार
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)