Friday, July 5, 2024
साहित्य जगत

ग़ज़ल

इस दौरे मुफलिसी में मुहब्बत न हो सकी।
उनके क़रीब जाने की हिम्मत न हो सकी।।

अपनों की बात सुनने की फुर्सत न हो सकी।
घर में बड़े बुजुर्गों की खिदमत न हो सकी।।

हर लम्हा जी रहा हूं मुहब्बत के वास्ते ।
फिर भी किसी के दिल पे हुकूमत न हो सकी।।

मानिन्दे ख़ुशबू बस गए सांसों में जो मेरी
उनके बग़ैर जीने की आदत न हो सकी।।

हमराज बन के जिसने छला उम्र भर मुझे ।
उसके खिलाफ कोई शिकायत न हो सकी।।

दुनिया के मसअलों में तू उलझा रहा सदा
दिल से कभी ख़ुदा की इबादत न हो सकी।।

ये दिल धड़क रहा है तुम्हारे ही वास्ते।
इस दिलकी धड़कनों से सियासत न हो सकी।।

विनोद उपाध्याय हर्षित

बस्ती(उत्तर प्रदेश)