Sunday, May 19, 2024
साहित्य जगत

ये मासूमियत ये बालपन…

ये मासूमियत ये बालपन
बीता जो सुनहला बचपन
जिंदगी तू याद आती है
वो महकती शाम
चहकती सुबह
स्वतंत्रता का भूखा पंछी
लहराते बाल
लुटाता मस्तियां फिजाओ में
मनमोहक अदाओं में,
घूरती तिरछी आंखे
मुस्कुराते होंठ
चमकते चेहरे
यौवन से गदराए
उभर आए
जेहन में
मेरा ही अक्स दोनों में
भविष्य कल का
मेरा ही तू
बैठा मेरे सामने आज
कल का आगाज
शांत मौन परिदृश्य
अभी तो हैं अदृश्य
महत्वकांक्षाएं अंकुर लेती
मन में
फलित होने के लिए आतुर
संसार में
कैद होगी किसी के प्यार में
पर अभी तो शांत
ढूंढ कर बैठी एकांत
कोमल मन में
प्रफुल्लित होगी जीवन में
मेरे भविष्य के आंगन में

डॉ. राकेश ऋषभ
जिला पूर्ति अधिकारी-बलरामपुर
(उत्तर प्रदेश)