Thursday, July 4, 2024
साहित्य जगत

सागर से (कविता)

सागर तुझे भी
तेरे अपनों ने ही लूटा,
तेरे सर्वाग्राही गुण ने ही
तेरे निर्मल, पवित्र जल को
मलिन किया।
बावजूद इसके
तुम्हें मिलते रहे
अतल, अथाह, धीर, गम्भीर जैसे
विशेषण।
किन्तु, आज
ये विशेषण भी तुमसे
चाह रहे हैं अब
सम्बन्ध-विच्छेद।

“मेरियाना” खोज से
अतल और अथाह छूटा,
सुनामी की लहरों ने
धीरता का ताज लूटा।

बढ़ता जल-स्तर तेरा,
उद्घोष ये है कर रहा।
निगल जाऊँगा धरा
फिर कहाँ तू गम्भीर रहा।।

किन्तु, सागर—-

तुम इससे हैरान मत होना
इसमें नहीं है तेरी कोई गलती
क्योंकि—-
आज विचार बदले हैं,
संस्कार बदले हैं।
परिभाषाएँ और अवधारणाएँ बदली हैं।
सागर—–
तुम खिन्न मत होना,
तुम्हारे ह्रास का हेतु
आज का पतित इन्सान है,
जिसने पहले
अपनी सभ्यता और संस्कृति को
विनष्ट किया।
और तल्लीन है
अपने अस्तित्व की
जड़ों को खोदने में।

अतः—-

तुम उदास ना होना,
तुम अपने दर्द का रोना
मत रोना।
तू फिर भी महान है,
तूने अपने लांक्षित जल को भी
वांछित बनाकर
इन्सान की रोटी को
स्वाद युक्त बनाया।

समता और
लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिमूर्ति
सागर,
तुम करके यत्न
अपने उक्त विशेषणों को
रखना सुरक्षित।
क्योंकि
इस संक्रमण और संघर्ष के
अन्तिम विजेता
तुम ही होओगे
नि:संदेह।।

डाॅक्टर कृष्ण कन्हैया वर्मा
प्रवक्ता-हिन्दी
श्री शिव मोहर नाथ पाण्डेय किसान जनता इण्टर कालेज नगर बाजार बस्ती।