Sunday, May 5, 2024
साहित्य जगत

डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ कृत ‘बाल चेतना’ का लोकार्पण

बस्ती। वरिष्ठ कवि एवं लोक प्रिय चाशनी के साथ ही 7 पुस्तकों के रचयिता डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ की आठवीं कृति ‘बाल चेतना’ का लोकार्पण पं. अटल बिहारी बाजपेई प्रेक्षागृह में किया गया। इस अवसर पर अनुराग लक्ष्य और शव्द सुमन द्वारा विराट अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के ख्यातिलब्ध कवियों, शायरों ने हिस्सा लिया। देर रात तक चले कवि सम्मेलन में श्रोता जमे रहे। मुख्य अतिथि उप जिलाधिकारी सदर शत्रुघ्न पाठक ने कहा कि समाज निर्माण में साहित्यकारोें की भूमिका महत्वपूर्ण है। कहा कि बाल कविता लिखना सबसे कठिन कार्य है। इसमें कवि को बालक बनना पड़ता है। महाकवि सूरदास की परम्परा किलकत कान्ह घुटुरूवन आवत’ को चरितार्थ करते हुये डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ की आठवीं कृति ‘बाल चेतना’ निश्चित रूप से पाठकों में लोकप्रिय होगी। अध्यक्षता करते हुये डॉ. रामनरेश सिंह ‘मंजुल’ ने कहा कि डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ का रचना संसार विविधता लिये हुये है। हास्य व्यंग्य के साथ ही गंभीर रचनाओं के द्वारा साहित्य को समृद्ध कर बाल रचना कर उन्होने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध किया है।
‘बाल चेतना’ के लोकार्पण के बाद कवि सम्मेलन का आरम्भ प्रसिद्ध गीतकार डा. बुद्धिनाथ मिश्र द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। उनका प्रसिद्ध गीत ‘ एक बार और जाल डाल रे मछेरे, जाने किस मछली में बन्धन की चाह हो’ से प्रेक्षागृह तालियों से गूंज उठा। डा. श्लेष गौतम की रचना ‘ पुरखों ने जो निभाई हमें चाहिये, त्याग की वो कमाई हमें चाहिये, राम घर-घर में हो, प्रार्थना है मगर, एक भरत जैसा भाई हमें चाहिये’ ने कवि सम्मेलन को नई ऊंचाई दी। कवि सम्मेलन का संचालन करते हुये हास्य व्यंग्य के प्रसिद्ध कवि सर्वेश अस्थाना ने कुंछ यू कहा ‘ किसी गिरगिट की, नेता से तुलना करना महापाप है क्योंकि रंग बदलने के मामले में नेता गिरगिट का बाप है’। शशांक नीरज की रचना ‘ यहां तो चलते हैं पर्दे के पीछे खेल सभी, गुनाह हवा के हैं, मुजरिम चराग होते हैं’ सुनाकर वातावरण को गंभीर बना दिया। डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी दीपक ने कुछ यूं कहा ‘ बजाता है सरगम की धुन पर कहरवा, है दस वर्ष का, बासुरी बेचता है’। ओज के सशक्त हस्ताक्षर प्रोफेसर ओम पाल सिंह निडर की पंक्तियां ‘ यही आरजू है मेरी कवि गणों से कि सब कुछ बिके पर कलम बिक न जाये’ के द्वारा संदेश दिया। महेश प्रताप श्रीवास्तव की पंक्तियां ‘ जो घर पर पीते हैं बिना चीनी के चाय, महफिल में वहीं रसगुल्ला खोजते हैं’ सुनाकर सुगर के रोगियों पर कटाक्ष किया। कवियत्री डा. अंजना ने ऋंगार और ओज के अनेक रचनाओं से कवि सम्मेलन को सरस किया। डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने ‘काली नागिन आज मौका है तो डसकर देख ले, मौत डसने में नहीं है, तेरे बल खाने में हैं’ सुनाकर वाहवाही लूटी। डॉ. विनोद उपाध्याय के शेर ‘ सुम्बुल सा जिस्म था या कोई माहताब था, मखमल की सेज पर कोई सोया गुलाब था’ के द्वारा महफिल लूटी। दिल्ली से पधारे डा. राधेश्याम बंधु की पक्तियां ‘ जब पसीने की कलम से वक्त खुद गीता लिखे, एक ग्वाला भी कभी बनता स्वयं भगवान है’ सुनाकर संदेश दिया। श्याम पंकज की रचना ‘ ज्योति कलश भी अंधकार का जब पग बंदन करते हैं, कलमों का अक्षर-अक्षर तब इंकलाब हो जाता है’ के द्वारा मानव मन के पीडा आर उमंग को स्वर दिया। अध्यक्षता कर रहे डा. राम नरेश सिंह मंजुल की पंक्तियां ‘ कुन्द धवल ओस गिरे, मोती ललचाने, ये बसंती फूल कहां आ गये अजाने’ को सराहा गया।
इस अवसर पर कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथियों और आयोजकों ने कवियोें, शायरों को सम्मानित किया। इसी कड़ी में डा. देवेन्द्रनाथ श्रीवास्तव, अंकुर वर्मा, राना दिनेश प्रताप सिंह, चन्द्रभूषण मिश्र, आलोक श्रीवास्तव, अनुराग श्रीवास्तव, रमेश लाल श्रीवास्तव, अमन श्रीवास्तव, राजेश चित्रगुप्त, अर्चना श्रीवास्तव, अशोक श्रीवास्तव आदि को अनुराग लक्ष्य और शव्द सुमन द्वारा अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कवि सम्मेलन में बड़ी संख्या में श्रोता देर रात तक जमे रहे।