Monday, May 6, 2024
साहित्य जगत

उसने कहा तोड़कर जंजीरों को

उन्मुक्त गगन में उड़ना है
कुछ सपने नए सजाना है
कुछ सपनों को उड़ाना है
कुछ जीवन में कर जाना है
कुछ दुनिया को दिखाना है
कुछ तन्हाई में गाना है
कुछ महफ़िल में सुनाना है
कुछ दिल मे उतर जाना है
कुछ दिल से उतर जाना है
कुछ रास्ता नया बनाना है
कुछ राहों से मुड़ जाना है
कुछ सुनना और सुनाना है
कुछ को खुद में मिलाना है
पर जंजीरों ने भी तो कड़ी बदली
बोला अब और कसन बढ़ाना है
कुछ कदम पे लुढ़काना है
कुछ पल हँस लिया
चलो लौट घुटन में जाना है
तू नारी है कितना उड़ेगी
क्या नर को पार करेगी
तू उपभोग की वस्तु है
तू उपभोक्ता कैसे बनेगी
तेरे ओढ़े लबादे को
आज नहीं तो कल
हमें ही मिल जाना है
तू जबतक कठोर नहीं बनेगी
तेरे हिस्से में कुछ अच्छा नहीं आना है
और कठोर बनते ही
तुझे सबसे अलग हो जाना है
तुझे सबसे अलग हो जाना है

सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश