Monday, May 6, 2024
साहित्य जगत

साहित्यकार की भूमिका कभी समाप्त नहीं होती-डॉ. अमिता दुबे

दुर्गेश कुमार मिश्र की स्मृति में सम्मानित हुईं विभूतियांः 6 छात्रांे को मिला प्रोत्साहन राशि

बस्ती । दुर्गेश कुमार मिश्र सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थान द्वारा साहित्यिक संगोष्ठी, राष्ट्रीय कवि सम्मेलन और सारस्वत सम्मान समारोह का आयोजन प्रेस क्लब सभागार में वरिष्ठ कवि डा. राम नरेश सिंह ‘मंजुल’ की अध्यक्षता और डा. रामकृष्ण लाल जगमग के संयोजन एवं संचालन में किया गया। इस अवसर पर संस्थाध्यक्ष डॉ. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र द्वारा इंजीनियर दीपक कुमार मिश्र के सौजन्य से 48 पुस्तकोेें की प्रणेता प्रसिद्ध ंसाहित्यकार और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ की प्रधान सम्पादक डॉ. अमिता दुबे को अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र, श्रीफल एवं 11 हजार रूपये का पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। इसी क्रम में 6 चयनित मेधावी छात्र-छात्राओं को दुर्गेश कुमार मिश्र की स्मृति में दो-दो हजार रूपये का पुरस्कार और प्रमाण-पत्र, स्मृति चिन्ह देकर उत्साहवर्धन किया गया।


मुख्य अतिथि डॉ. अमिता दुबे ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डा. लक्ष्मीनारायण की धरती पर उन्हें जो सम्मान मिला उससे अभिभूत हूं। कहा कि एक साहित्यकार की भूमिका कभी समाप्त नहीं होती। वह जीवन की जीजिविषा में भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। समाज निर्माण और वैचारिक चेतना, मानवीय संवेदना को बचाये बनाये रखने में साहित्यकारों की सदैव अग्रणी भूमिका रही है। युगीन रचनाकार इस दिशा में निरन्तर गतिमान हैं और अपने समय के सत्य को शव्द दे रहे हैं। डॉ. अमिता दुबे ने बचपन पर केन्द्रित कविता सुनाकर भाव विभोर किया।
दिल्ली से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार डा. राधेश्याम बंधु ने कहा कि साहित्यकार को सम्मान नवीन ऊर्जा देते है, इससे उसे समाज के प्रति और बेहतर करने का उल्लास बढता है। कहा कि दुर्गेश कुमार मिश्र स्मृति सम्मान की परम्परा निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि है। उनकी रचना ‘ आदमी कुछ भी नहीं फिर भी वतन की शान है, एक अंधेरी झोपड़ी का वह स्वयं दिनमान है, जब पसीने की कलम से वक्त खुद गीता लिखे, एक ग्वाला भी स्वयं बनता कभी भगवान है’ के द्वारा कार्यक्रम को ऊंचाई दी।
साहित्य भूषण हरीलाल मिलन ने कहा कि साहित्यकार अपने समय के सत्य का सटीक पारखी है। वह भविष्य दृष्टा भी है। उनकी रचना ‘ कभी सुख, कभी दुःख के किस्से कहेंगे, गजल गीत दोहों की नदियां बहेंगी, मुझे याद करता रहेगा जमाना, मेरे बाद मेरी किताबें रहेंगी’ को श्रोताओें ने सराहा।
संस्थान के अध्यक्ष डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र ने कहा कि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की प्रधान सम्पादक डॉ. अमिता दुबे को सम्मानित कर संस्थान स्वयं गौरवान्वित है। इससे और बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। दुर्गेश कुमार मिश्र की स्मृति में जो सम्मान कवि साहित्यकार एवं चयनित छात्रों को दिया जाता है उसके मूल उद्देश्य में सद्भावना और संकल्प निहित है।
संचालन करते हुये वरिष्ठ कवि डा. रामकृष्णलाल जगमग ने कहा कि बस्ती की धरती पर अनेक स्वनामधन्य रचनाकारांें का आगमन हुआ है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की प्रधान सम्पादक डॉ. अमिता दुबे ने अपने प्रशासनिक और पारिवारिक दायित्वों का पालन करते हुये 48 पुस्तकों की रचनाकर भारतीय मनीषा को समृद्ध किया है। साहित्यिक समाज को उनसे बहुत अपेक्षायें हैं। डा. सत्यव्रत ने आयोजन की उपादेयता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
इस अवसर दुर्गेश कुमार मिश्र की स्मृति में हरीलाल मिलन, डा. राधेश्याम ‘बंधु’ डा. ओम प्रकाश वर्मा ‘ओम’ ज्ञानेन्द्र द्विवेदी ‘दीपक’ डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’, विनोद उपाध्याय, हरीराम बंसल, श्याम प्रकाश शर्मा, डा. वी.के. वर्मा, श्रीमती नीलम सिंह, वी.के. मिश्र, डा. सत्यव्रत, अमेरिका से पधारी मशाल स्मिथ, सर्वेश कुमार श्रीवास्तव, डा. कृष्ण प्रसाद मिश्र, जगदम्बा प्रसाद भावुक आदि को अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में निराला साहित्य एवं संस्थान द्वारा डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र को उनके साहित्यिक योगदान के लिये सम्मानित किया गया।
सतीश आर्य द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती की वंदना से आरम्भ कवि सम्मेलन में अनेक कवियों ने काव्य पाठ किया। डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी के शेर ‘ छोडिये गुरू द्रोण की, एकलव्य की आइये बातें करें मनत्व्य की’ के द्वारा समय को स्वर दिया। विनोद उपाध्याय की रचना ‘ हमारी याद में आंसू बहा रहा है कोई, नजर से दूर है लेकिन बुला रहा है कोई’ को सराहना मिली। ओज के समर्थ कवि डा. ओम प्रकाश वर्मा ‘ओम’ की ओजस्वी कविताओं ने मंच को ऊंचाई प्रदान किया। डॉ. राम कृष्ण लाल जगमग ने जहां हास्य व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से लोगों को हंसाया वहीं गंभीर रचनाओं के माध्यम से श्रोताओं को सोचने पर बाध्य किया ‘ जो भी हो पर सत्य कहूंगा, झरना जैसा सदा बहूंगा, इन्ही किताबों के बल पर मैं मरने पर भी अमर रहूंगा’ इसे काफी सराहना मिली। इसी कड़ी में अर्चना श्रीवास्तव, अनुरोध श्रीवास्तव, सुशील सिंह पथिक, डा. राजेन्द्र सिंह राही, शाद अहमद ‘शाद’ पं. चन्द्रबली मिश्र, दीपक सिंह प्रेमी, अजय श्रीवास्तव ‘अश्क’ हरिकेश प्रजापति, आदित्यराज, तौव्वाब अली, रहमान अली रहमान आदि ने वर्तमान संगति, विसंगतियों पर रचनायें प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से रामदत्त जोशी, त्रिपुरारी मिश्र, अमित मिश्र, पेशकार मिश्र, बटुकनाथ शुक्ल, उमेश चन्द्रा, आशुतोष प्रताप, सत्येन्द्रनाथ श्रीवास्तव, सात्विक श्रीवास्तव, अखिलेश श्रीवास्तव, धर्मेन्द्र कुमार चौधरी, के साथ ही बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।