Wednesday, July 3, 2024
बस्ती मण्डल

एक शख्सियत जिसके के सामने पहाड़ का क़द भी बौना-आदिल खान

बस्ती। दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज्‍़बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक पहाड़ का गुरूर तोड़ कर उसके सीने को चीर रास्ता ना बना दिया
बिहार में गया के करीब गहलौर गांव में दशरथ मांझी को माझी द माउंटन मैन बनने का सफर उनकी पत्नी का ज़िक्र किए बिना अधूरा है. गहलौर और अस्पताल के बीच खड़े जिद्दी पहाड़ की वजह से साल 1959 में उनकी बीवी फाल्गुनी देवी को उनकी बीमारी का वक्‍़त पर इलाज नहीं हो सका और वो चल बसीं. यहीं से शुरू हुआ दशरथ मांझी के प्यार का इम्तेहान और फिर उन्होंने बीबी जाने का पहाड़ से लिया इंतकाम

22 साल की मेहनत:
पत्नी के चले जाने के गम में डूबे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और अकेले पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. शुरुआत में उन्हें पागल तक कहते थे ‘गांववालों ने शुरू में कहते थे पागल हो गया लेकिन उनके तानों ने उनके हौसला को और बढ़ा दिया’.

अकेला शख़्स पहाड़ भी काट सकता है
साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया।

दशरथ मांझी तो दुनिया से चले गए लेकिन हमारी यादों से नहीं sसमाजसेवी आदिल खान, दशरथ मांझी जी के द्वारा गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया. केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वो जब दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को प्यार का सबक सिखाती रहेगी।
आपको बताते चले कि जिला बस्ती के रहने वाले चंबल वाले गुरु जी के नाम से प्रसिध्द आदिल खान लगभग 5 दर्जन बच्चों को चंबल विद्यापीठ के बैनर तले चंबल घाटी में निशुल्क शिक्षा दे रहे है l
समाजसेवी का हमेशा प्रयास रहता है कि लोगों में हमेशा आपसी भाई चारा बना रहे l
सभी लोग एक साथ मिल जुल कर देश को उन्नति के ओर लेजाएं
लोगों की समस्याओं को चंबल परिवार के साथियों के सहयोग से दूर कराने का प्रयत्न करते है,
समाजसेवी ने दशरथ माझी की तरह निस्वार्थ भाव से सेवा करने की लोगों से अपील की और माउंटेनमैन के परिनिर्वाण दिवस पर उन्हें दिल की गहराईयों से याद किया