(कविता) आत्मदीप
लाख जलाओ मृत्तिका दीप,
अंतस अंधियारा कैसे छूटेगा?
आत्मदीप एक बार जलाओ,
जग अंधियारा स्वयं घटेगा ।।
नीयत साफ रहे जो अपना ,
नियति साथ रहेगी सदा।
घोर अंधेरा व्याप्त है जग में,
हिय का कलुष मिटा लो जरा।।
कर्म निकृष्ट करोगे तुम! तो ,
उत्कृष्ट परिणाम मिलेगा कैसे?
प्रकृति से पाओगे वही जो,
दान करोगे सृष्टि को..।
सत्य आचरण सत्य तपोबल,
श्रेष्ठ कर्म का श्रेष्ठ हो फल ।
मान और मर्यादा कर धारण,
आंकलन कर चिंतन-मंथन कर
हेय-ध्येय ना करो धार तुम!
विकट पंथ को करो पार तुम!
जीत सको तो ‘स्व’ को जीतो
बन जाओ खुद का आधार तुम!
मृत्तिका- मिट्टी
धार तुम- धारण
आर्यावर्ती सरोज आर्या
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)