Sunday, May 19, 2024
साहित्य जगत

बसन्त

बाल, वृद्ध,युवा सभी को भा गया बसंत
शरद ऋतु का देखो हो रहा अब अंत

खिल गयी कली सभी बाल झूमे गली-गली
सखियाँ सभी मस्त हो करके बाग़ चली
याद कर रही सभी अपने अपने कंत
मन को सभी के देखो लुभा रहा बसंत

पीली-पीली सरसो दूर-दूर तक दिखे
गोरी की चुनरिया हरी पात सी दिखे
खेत बीच गा रही गुजरिया बनके संत
हो कृष्ण प्रेम में जैसे मीरा का बसंत

स्वाद हैं कई सारे व्यंजनों में भी
खा रहे बाल युवा वृद्ध मिल सभी
जुड़ रहे एक दूजे से सबके तंत
हृष्ट पुष्ट कर रहा तन को भी बसंत

सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश