Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

कहानी- प्रेम की परिभाषा

कहानी- प्रेम की परिभाषा

“मम्मी , मम्मी यह वैलेंटाइन डे क्या होता है ?
बर्तन साफ कर रही आकृता से जब उनकी 9 साल की बेटी संस्कृता ने यह प्रश्न किया तो आकृता अचानक असहज हो गई और जोर से बोल पड़ी – तुम्हें क्या करना है वैलेंटाइन डे का? जाकर अपनी पढ़ाई करो, परीक्षा करीब है।
मम्मी के गुस्से को देख कर संस्कृता चुपचाप वहां से हट गई ।
बर्तन साफ करते हुए आकृता सोचने लगी कि ऐसे ही मैंने संस्कृता पर गुस्सा उतार दिया, आखिर उस बच्ची ने गलत क्या पूछा ? आजकल तो बस यही सुनने को मिलता है आज फलाना डे है तो कल फलाना डे। बेटी के प्रश्न का उत्तर मुझे देना चाहिए तभी तो उसकी जिज्ञासा शांत होगी और अगर मैं ही उसे नहीं बताऊंगी तो वह कहीं और से सही गलत जानकारी पा ही जाएगी। इससे तो अच्छा है कि मैं ही उसे सही जानकारी दे दूं।
यही सोचते-सोचते आकृता हॉल में आ गई, जहां संस्कृता अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी। आकृता उसके पास बैठ गई और प्यार से बोली- संस्कृता तुम जानना चाहती थी न वैलेंटाइन डे क्या होता है? सब बताऊंगी, पर पहले तुम यह बताओ कि तुम क्या जानती हो वैलेंटाइन डे के बारे में ।
संस्कृता बोली -यही कि इस दिन लोग एक दूसरे को गुलाब का फूल देते हैं, गिफ्ट देते हैं, घूमने जाते हैं, पार्टी करते हैं, मैंने यह सब टीवी पर देखा है। ”
आकृता ने कहा- सही कहा तुमने, यही सब करते हैं लेकिन उस नजरिए से नहीं, जो टीवी पर दिखाते हैं। वैलेंटाइन डे अर्थात प्रेम दिवस। हमारे जो अपने हैं ,जो मन को भाते हैं, उनके प्रति आदर, प्रेम व सम्मान प्रकट करने का दिन ही है वैलेंटाइन डे।
जैसे कि तुम्हारी दादी रोज मिसेज शर्मा के घर से ढेर सारे ताजे फूल लाती है। उन फूलों से भगवान को सजाती है , इस तरह वह भगवान के प्रति अपना प्रेम दर्शाती है।
बाकी बचे फूलों से एक माला और एक गुलदस्ता बनाती है, फूलों की माला तुम्हारे दादा जी की तस्वीर पर चढ़ाती है, क्योंकि तुम्हारी दादी तुम्हारे दादा जी से बहुत प्रेम करती थी। गुलदस्ते को वह हॉल में सजा देती है ,जो सारे दिन अपनी खुशबू से घर को महका देता है।तुम्हारी दादी तो रोज अपना प्रेम प्रकट करती है, भगवान के प्रति ,दादाजी के प्रति और हमारे प्रति भी गुलदस्ते के जरिए।”
संस्कृता बोली -हां मम्मी, मेरी फ्रेंड ने एक बार कहा भी था कि तुम्हारे घर में कितनी अच्छी खुशबू आती है।”
आकृता ने बताया- मां जी के लिए रोज ही वैलेंटाइन डे है। मगर आजकल के लोग जिंदगी की भागदौड़ में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास अपने “अपनों” तक के लिए वक्त नहीं है, इसलिए लोगों ने ही यह वैलेंटाइन डे/प्रेम दिवस नामक दिन बनाए हैं, ताकि इस दिन हम अपने स्नेहीजनों के प्रति प्रेम व सम्मान दर्शा सकें।
संस्कृता : “तो फिर मम्मी सभी ऐसा क्यों कहते हैं कि यह अच्छा दिन नहीं है।”
आकृता : क्योंकि उन्हें सत्य की जानकारी नहीं है , लेकिन अगर सही और अच्छी नियत से देखा जाए तो यह कोई गलत दिन नहीं है। यह दिन इसलिए भी खास है क्योंकि इसी दिन देश के 3 वीर सपूत भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु ने देश के प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हुए हंसते-हंसते अपनी कुर्बानी दी थी। इस दिन को मातृ -पितृ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। माता पिता के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का दिन यानी प्रेम दिवस का ही एक रूप है।
हां , कुछ गलत लोगों की वजह से यह दिन गलत समझा जाता है। हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं एक अच्छा तो एक बुरा, निर्भर हम पर करता है कि हम सिक्के का कौन सा पहलू चुने? अच्छा या बुरा ।
अच्छा तुम बताओ कि तुम किससे सबसे ज्यादा प्रेम करती हो?
संस्कृता : मैं सबसे ज्यादा आपको और पापा को, फिर दादी को, फिर भाई को , फिर बुआ को, फिर डॉगी को, फिर तृष्णा सहेली को फिर शर्मा अंकल को फिर….. फिर….. फिर…..
आकृता : (बीच में टोककर) बस-बस मेरी एक्सप्रेस ट्रेन, समझ गई मैं। यही समझाना चाहती थी कि हमारे मन में सभी के लिए प्रेम होता है, किसी के लिए अधिक तो किसी के लिए कम।
तुम्हें याद है “जब तुम सीढ़ियों से गिर गई थी , तो तुम्हारे पापा पूरे 2 दिनों तक न खाए थे न सोए थे । यहीं प्रेम है।”
जब तुम्हारी दादी सत्संग में जाती है, तब खुद को मिले प्रसाद को पूरा बचाकर मेरे लिए ले आती है। यहीं प्रेम है।
जब तुम्हारे पापा देर रात तक घर नहीं आए रहते और मैं बिना खाए बेचैनी से उनका इंतजार करती रहती हूं। यही प्रेम है।”
जब तुम्हारे 4 साल के भाई को जरा सी चोट लगती है और उसे रोता देखकर तुम भी रोने लगती हो । यही प्रेम है।
बस इन्हीं सब रिश्तो के प्रति अपना प्रेम दर्शाने का दिन ही वैलेंटाइन डे या प्रेम दिवस या मातृ-पितृ दिवस है।
कुछ समझी मेरी दादी अम्मा?”आकृता ने प्यार से संस्कृता की ओर देखते हुए कहा।
“हाँ, मम्मी…। समझ गयी….।” संस्कृता ने आकृता से लिपटते हुए कहा।

और 4 दिन बाद
सुबह-सुबह काम वाली जैसी ही आई खुशी से उछलते हुए अपने हाथ दिखा कर बोली-“दीदी देखो ना यह चूड़ियां , मुझे मेरी 10 साल की बेटी ने तोहफे में दी है, आज वैलेंटाइन डे है ना इसीलिए।”
आपकी बेटी ने उसको बताया था आज के दिन के बारे में । सच्ची दीदी, मुझे ना आज बहुत खुशी हुई।
आकृता , कामवाली की आंखों में इतनी खुशी पहली बार देख रही थी।
संस्कृता का सुबह से कुछ पता न था , जाने कहां गई थी । सब्जी लेने जब आकृता घर के बाहर आई तो मोहल्ले की औरतें घेर कर खड़ी हो गई । सबकी बस एक ही बात थी कि आज उनके बच्चों ने यह किया वैलेंटाइन पर । कोई बोली कि आज मेरे 8 साल के बेटे ने मेरे लिए चाय बनाई, तो कोई बोली कि मेरे बेटे ने मेरे लिए गुलदस्ता बनाया। किसी ने कहा कि मेरी बेटी ने आज मेरे लिए अपने हाथों से नाश्ता बनाया, तो किसी ने कहा कि मेरे दोनों बच्चों ने आज शाम को घर पर छोटी सी पार्टी की तैयारी की है। सभी औरतों ने खुश होकर बताया कि उनके बच्चों ने उनके लिए क्या किया और साथ में संस्कृता की भी खूब तारीफ की, जो इस पूरे घटनाक्रम की मास्टरमाइंड थी।
सबकी खुशी देख आकृता भी बहुत खुश हुई , मगर सोचने लगी कि आखिर मैडम सुबह से है कहां?
11:00 बजे संस्कृता घर आई। अपने मम्मी-पापा और दादी को खुद के हाथ से बनाया फूलों का गुलदस्ता और कार्ड देकर उनके पैर छूकर बोली- हैप्पी वैलेंटाइन डे, माय वर्ल्ड बेस्ट दादी,मम्मी, पापा एंड भाई।
मम्मी यह केक मैंने तृष्णा के घर बनाया । आंटी से पूछ-पूछकर (बिस्किट केक दिखाते हुए संस्कृता बोली)
आकृता ने संस्कृता को सीने से लगा लिया ।
संस्कृता को आज सही मायने में वैलेंटाइन डे की परिभाषा समझ में आ गई थी।

शिखा गोस्वामी “निहारिका”
मुंगेली, छत्तीसगढ़
© मौलिक, स्वरचित,