Monday, July 1, 2024
बस्ती मण्डल

जयन्ती की पूर्व संध्या पर याद किये गये मुंशी प्रेमचन्द

बस्ती । प्रेमचंद साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान द्वारा शनिवार को उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र को उनकी जयन्ती पर याद किया गया। प्रेस क्लब सभागार में वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला के संयोजन में आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि जब तक देश में गरीबी, असमानता, अशिक्षा है प्रेमचन्द्र का साहित्य प्रांसगिक बना रहेगा।
शिव हर्ष किसान पी.जी. कालेज के पूर्व प्राचार्य डा. रघुवंशमणि त्रिपाठी ने कहा कि महान साहित्यकार, हिंदी लेखक और उर्दू उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन काल में कई रचनाएं लिखी हैं। जिसमें गोदान, कफन, दो बैलों की कथा, पूस की रात, ईदगाह, ठाकुर का कुआं, बूढ़ी काकी, नमक का दरोगा, कर्मभूमि, गबन, मानसरोवर, और बड़े भाई साहब समेत कई रचनाएं शामिल हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिकित्सक डा. वी.के. वर्मा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने पूरे जीवन काल में 12 से अधिक उपन्यास और 250 कहानियां समेत कई निबंध लिखे। इसके अलावा उन्होंने कई विदेशी साहित्य का हिंदी में अनुवाद भी किया। मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी के लम्ही गांव में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन के कई वर्ष गरीबी और आर्थिक तंगी में गुजारे। लेकिन इन सबके बाद भी मुंशी प्रेमचंद ने अपनी मेहनत और लगन के बल पर अनेक रचनाओं को सूचीबद्ध किया। लंबी बीमारी के कारण, 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद का निधन हुआ।
वरिष्ठ चिन्तक डा. रामदल पाण्डेय ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की साहित्यकार, कहानीकार और उपन्यासकार रूप में चर्चा अक्सर होती है। पर उनके पत्रकारीय योगदान को लगभग भूला ही दिया जाता है। जंगे-आजादी के दौर में उनकी पत्रकारिता ब्रिटीश हुकूमत के विरुद्ध ललकार की पत्रकारिता थी। इसकी बानगी प्रेमचंद द्वारा संपादित काशी से निकलने वाले दो पत्रों ‘जागरण’ और ‘हंस’ की टिप्पणीयों-लेखों और संपादकीय में देखा जा सकता है।
प्रेेमचंद जयंती पर आयोजित गोष्ठी को डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ विनोद कुमार उपाध्याय, नन्द कुमार नन्दा, सत्य नरायन पाण्डेय, वी.के. मिश्र, अनुंरोध कुमार श्रीवास्तव, प्रधानाचार्य नीलम सिंह, नीरज वर्मा ‘नीर प्रिय’ इंदिरा श्रीवास्तव, सुमन सागर, सुदामा राय, हरिकेश प्रजापति, डा. राजेन्द्र सिंह, सुधीर गोण्डवी, श्याम प्रकाश शर्मा एडवोकेट, फूलचन्द्र चौधरी, मानवी सिंह, आदि ने प्रेमचन्द के साहित्य के सरोकारोें पर विस्तार से प्रकाश डाला। कहा कि उन्होंने 1914 में उन्होने हिंदी में लिखना शुरू किया। पहला हिंदी लेखन सौत सरस्वती पत्रिका में दिसंबर के महीने में 1915 में और सप्त सरोज के जून के महीने में 1917 में प्रकाशित हुआ था। 1916 में अगस्त के महीने में उन्हें नॉर्मल हाई स्कूल, गोरखपुर में सहायक मास्टर के रूप में पदोन्नत किया गया। गोरखपुर में, उन्होंने कई पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया। उनका पहला हिंदी उपन्यास सेवा सदन (मूल भाषा बाजार-ए-हुस्न शीर्षक से उर्दू थी) 1919 में हिंदी में प्रकाशित हुआ था। इलाहाबाद से बीए की डिग्री पूरी करने के बाद उन्हें वर्ष 1921 में स्कूलों के उप निरीक्षक के रूप में पदोन्नत किया गया था। उन्होंने 8 फरवरी 1921 को गोरखपुर में आयोजित एक बैठक में भाग लेने के बाद सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने का फैसला किया, जब महात्मा गांधी ने लोगों से असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से सामईन फारूकी, गुलाम हुसेन, सरयू प्रसाद मिश्र, विनय कुमार श्रीवास्तव, अजीत श्रीवास्तव, पेशकार मिश्र, ओंकार चतुर्वेदी, ओम प्रकाश धर द्विवेदी, बाबूराम वर्मा, जर्नादन प्रसाद चौधरी आदि शामिल रहे। इस अवसर पर प्रेमचंद साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान द्वारा अनेक विभूतियों को सम्मानित किया गया।