Saturday, June 29, 2024
बस्ती मण्डल

आज के समाज में ऐसे गुरु की जरुरत है जो शिष्य के विकारों को दूर कर सके : प्रधानाचार्य अरविन्द सिंह

विद्या मंदिर रामबाग बस्ती में मनाया गया गुरु पूर्णिमा पर्व

बस्ती। सरस्वती विद्या मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय रामबाग की वन्दना सभा में आज श्री गुरु पूर्णिमा उत्सव हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री अरविंद सिंह जी ने दीप प्रज्ज्वलन एवं महर्षि वेद व्यास की तस्वीर पर माल्यार्पण किया।

उन्होंने कहा आज के समाज में ऐसे गुरु की जरुरत है जो शिष्य के विकारों को दूर कर सके। विद्यालय के आचार्य श्री वायुनन्दन मिश्र ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि आज गुरु पूर्णिमा है। हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है। संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु को महत्व देने के लिए ही महान गुरु वेद व्यासजी की जयंती पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन भगवान शिव द्वारा अपने शिष्यों को ज्ञान दिया गया था।

उन्होंने आगे कहा कि इस दिन कई महान गुरुओं का जन्म भी हुआ था और बहुतों को ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी। इसी दिन गौतम बुद्ध ने धर्मचक्र प्रवर्तन किया था।
ज्ञात हो कि आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। यह पर्व जून से जुलाई के बीच में आता है। इस पर्व को हिन्दू ही नहीं बल्कि जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोग भी मनाते हैं। माता और पिता अपने बच्चों को संस्कार देते हैं, पर गुरु सभी को अपने बच्चों के समान मानकर ज्ञान देते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि गुरु और शिक्षकों का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। एक विद्यार्थी के जीवन में गुरु अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। गुरु के ज्ञान और संस्कार के आधार पर ही उसका शिष्य ज्ञानी बनता है। गुरु की महत्ता को महत्व देते हुए प्राचीन धर्मग्रन्थों में भी गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान बताया है। एक व्यक्ति गुरु का ऋण कभी नहीं चुका पाता है।
गुरु मंदबुद्धि शिष्य को भी एक योग्य व्यक्ति बना देते हैं। संस्कार और शिक्षा जीवन का मूल स्वभाव होता है। इनसे वंचित रहने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।
गुरु के ज्ञान का कोई तोल नहीं होता है। हमारा जीवन गुरु के अभाव में शून्य होता है। गुरु अपने शिष्यों से कोई स्वार्थ नहीं रखते हैं, उनका उद्देश्य सभी का कल्याण ही होता है। गुरु को उस दिन अपने कार्यो पर गर्व होता है, जिस दिन उसका शिष्य एक बड़े स्थान पर पहुंच जाता है।