Sunday, May 19, 2024
साहित्य जगत

नशे को ना

नशे को ना कर ।
है ! ये तेरा जीवन अनमोल ।
तू आया इस धरा पर ,कर
सार्थक अपना मनुज जीवन‌
न पाल पापी तू इसको
न बना तू पापी दोस्त
न बॉध तू पाप की गठरी
संग अपने नाम के
ये नशा तो है जाना पहचाना दुश्मन। छीने तुझसे सारी तेरी प्यारी सारी चीजें।
दूर रहो! न भूल से भी
छूना इसको । जहाँ देखो जहाँ जानो जाओ दो संदेश नशा तो बोले हरपल
टच भी नाट!
मे हूँ छुई-मुई सा
मुझको छुते ही तुम कुम्हलाओगे जीवन
से तुम दूर चले जाओगे
बनके जिंदा लाश रहोगे।
करोगे चोटिल हर प्रियवर
को । ये छीने आँखो से तेरे ख्वाब ,तेरे कदमों से चलने की शक्ति।
करता पंगू ये
तन-मन मस्तिष्क
न बनो तुम इसके दास यह तो नरक का द्वार।
नशे को बंधु ना कर
बढ़ा कदम जीवन की ओर

©डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ (,उत्तर प्रदेश)