Thursday, July 4, 2024
साहित्य जगत

महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित नेकीराम शर्मा जी

            पुण्य तिथि पर विशेष

राष्ट्ररत्न पंडित नेकीराम शर्मा जी के जीवन ,त्याग एवं आजादी की लड़ाई में उनके सर्वश्रेष्ठ योगदान पर मेरे परम पूज्य पिताजी वैद्य टेकचंद जी शर्मा ने सन् 1973 में ,उनकी जीवनगाथा दृष्टि बिन्दु पत्रिका में धारावाहिक रूप से

कई कड़ियों में धारावाहिक रूप से क्रमशः प्रकाशित की थी ,उस लेख श्रंखला का शीर्षक था

मेरी श्रद्धा के चरम शिखर पर : पंडित नेकीराम शर्मा

इस वृहद लेख से पूर्व पंडित जी का अभिनन्दन ग्रन्थ ही आम जिज्ञासु को उपलब्ध था। इस जीवन गाथा में बहुत सी अप्रकाशित घटनाओं एवं तथ्यों का भी शोधपूर्ण विवरण दिया गया।

शोध पूर्ण, केवल एक शोध कार्य प्रस्तुत है-

पंडित जी के अभिनन्दन ग्रंथ के सम्पादक जी तब तक १९७३ तक भी दिवंगत नहीं हुए थे , उनसे कोशिश करके पंडित जी से संबंधित उन बातों को जानने की कोशिश की गई ।जिनको मूल अभिनन्दन ग्रन्थ में 1956 में अज्ञात कारणों से सम्मिलित नहीं किया गया था ।

1973 के बाद जो भी पंडित जी पर लेखन कार्य हुआ , उसमें मेरे पूज्य पिताजी ‌द्वारा लिखित इस जीवन गाथा की बातों को सम्मिलित किया गया।

सर्वविदित है कि उनके सुपुत्र वैद्य मोहन कृष्ण जी की शादी के तत्काल बाद भिवानी की घंटाघर धर्मशाला , जिसमें वे गांव केलंगा से विभिन्न कारणों से आकर रह रहे थे। धर्मशाला के मालिकों ने पंडित जी के बच्चों को उनकी जेल यात्रा के दौरान निकाल कर बेघर कर दिया था।

सेठ शोरावाला उसके परिवार को लेकर आये, वह अपनी हवेली के एक अलग भाग में वर्षों तक रखा।

जब पंडित जी जेल से बाहर भिवानी में होते, तो वे स्वयं हवेली के सामने बनी सेठ की मर्दानी बैठक में ही प्रायः रहते थे जबकि परिवार ठीक सामने हवेली में।

मुझे पूर्व विधायक स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामकुमार बिढाट जी ने बताया कि इस बैठक में पंडित जी से मिलने तत्कालीन आजादी की लड़ाई के लगभग सभी बड़े महापुरुषों का आना हुआ है। जिनमें महात्मा गांधी जी , पुरूषोत्तम दास टंडन , लाला अचिंत्य राम ,सेठ जमनालाल बजाज , राजाजी राजगोपालाचारी जी , पंडित जय नारायण व्यास , हीरालाल शास्त्री जी आदि सभी सभी नेता गण सम्मिलित थे। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी तो एक बार से ज्यादा दिन भी इसी बैठक में पंडित जी के साथ रूकें थे।

नेताजी के उसी प्रवास में उनका भिवानी की बन्द कंट्री में मुश्किल से सभा का आयोजन हो पाया था ,उस कटली जो तब बाजार था ,उस सभा के बाद से स्वराज कटली कहलाती है।

मैं गौरवशाली महसूस करता हूं कि सन् 1980 में उस महान पुरुषों की यादगार बैठक को शोरैवालों से प्रार्थना करके मेरे पिताजी जी ने मेरे नाम से खरीद लिया था।

उस बैठक का वह कमरा जिसमें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी रूकें थे ,मैंने अभी तक ज्यों का त्यों रख रखा है , यद्यपि बाकि सभी कुछ नया बना लिया था।इस वर्ष कुछ बैठक में भी रिपेयरिंग की गई है।

पंडित नेकीराम जी के प्रयास से ही भाखड़ा नहर बनाई गई ।

किसान से बेगार प्रथा उन्होंने समाप्त करवाई।

उनके लगभग एक दर्जन शिष्यों ने तब राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया, आजादी के बाद देश का नेतृत्व किया, संविधान बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई।

उनके मुख्य शिष्य पंडित रामकुमार बिढाट जी ने उनके कांग्रेस सदस्यता अभियान के अन्तर्गत किसानों के मसीहा चोधरी देवीलाल जी को छोटी सी आयु में कांग्रेस का सदस्य बनाया।

उनके उसी अभियान को उनके जाने के बाद भी पंडित रामकुमार बिढाट जी ने जारी रखा।

स्वतंत्रता सेनानी पंडित भगवत दयाल शर्मा जी , बिड़ला शिक्षा संस्थान , पिलानी में प्रोफेसर के रूप में थे , आजादी के बाद ,जेल से छूटने के बाद से श्री राम कुमार जी , तत्कालीन इंटक ,कांग्रेस के विभाग के अध्यक्ष थे, आपने भगवत दयाल जी को बिड़ला कालेज , पिलानी ,से इस्तीफा दिलवा कर कांग्रेस में सम्मिलित किया व अपनी स्वयं की अध्यक्षता में सीधे इंटक का सचिव बनाया।

इसी प्रकार स्वतंत्रता सेनानी चौ निहाल सिंह तक्षक जी भी ,जो आजादी के बाद जेल से आने के बाद से बिड़ला शिक्षा संस्थान , पिलानी में स्कूल शिक्षा प्रसार ग्रामीण का काम संभाल रहे थे, दुबारा राजनीति में सक्रिय किया ।

मेरे पूज्य पिताजी वैद्य टेकचंद शर्मा, दादाजी पंडित सोहन लाल जी तथा खानदान में दादा जी पंडित रामकुमार बिढाट जी सभी अपनी उस जमाने में भी अच्छी खासी सर्विसेज छोड़ कर पंडित नेकीराम जी से दिक्षित होकर कांग्रेस में सेवा की व आजादी की लड़ाई में काफी बार जेल गये।

हर शिवरात्रि को आल इंडिया रेडियो से बिना नागा पंडित नेकीराम जी का शिव जी भगवान के स्तोतरों का स स्वर संगीतमय पाठ होता था।भिवानी निवासी भारत श्रेष्ठ संगीतकार श्री भट्ट जी तब भी संगीत देते थे।

मेरे को मेरे पूज्य पिताजी ने पुज्यनीय रामकुमार बिढाट जी व उनके भाई ने पंडित जी के बारे में बहुत सी बातें बता रखी हैं। वे इस देश के श्रेष्ठ तय स्वतंत्रता सेनानी थे , जिन्होंने अपनी मर्जी से श्री भीमसेन सच्चर को पंजाब का पहला मुख्यमंत्री बनाया ,जो कि आजादी प्राप्त होने के लगभग २० दिन बाद मुश्किल से भारत आकर संपर्क ग्रहण कर पाये थे।

आपने स्वयं टिकटें बांटी पर खुद कभी चुनाव नहीं लड़ा।

आज उनकी पुण्यतिथि तिथि पर बाबा मुंगीपा शिक्षण संस्थान परिवार, कौशिक बिढाट परिवार एवं भिवानी के सभी हमारे साथियों ,वकिल भाईयों व बहनों की तरफ से हम उन महान आत्मा को सत् सत् नमन करते हैं।

राधेश्याम कौशिक

एडवोकेट

भिवानी, हरियाणा