Thursday, July 4, 2024
साहित्य जगत

ग़ज़ल

पुरानी चोट से उभरा हुआ हूं।
जहां पे था वही ठहरा हुआ हूं।।
नहीं सुन पाउगा कुछ भी यहां पर ।
तुम्हारी याद में बहरा हुआ हूं।।
नज़र फेरी है तुमने जिस तरह से ।
नज़र से लग रहा उतरा हुआ हूं।।
मुहब्बत का सफर कैसे बताऊं।
कि मैं किसदर्द से गुज़रा हुआ हूं।|
विनोद उपाध्याय हर्षित
बस्ती (उत्तर प्रदेश)
9450558163