Monday, July 1, 2024
साहित्य जगत

सुनो! वसंत आ गया है

सुनो!
वसंत आ गया है।
तुम भी आ जाओ ना,
मेरे सपनों की तरह बिखरने लगे हैं,
टेसू के फूल……!!
उन्हें चुन रही हूं,बुन रही हूं….,
ढ़ाक के पात पर,प्रीत पाती लिख रही हूं,
भोर का भानु पलाशी रंग लिए
उपवन ये सारा यौवन उमंग लिए,
मंद मलय भी मद्धम- मद्धम
प्रीत गीत गुनगुना रही है…,
अलि भी गुंजन करता,
प्रेम पेंग बढ़ा रहा है….,
टेसू के फूल अंजुली में भर- भर
तुम मुझ पर भी बरसा जाओ ना-
सुनो! वसंत आ गया है…,
तुम!भी आ जाओ ना!
वो, बचपन! वो, अल्हड़पन,
कंचन-कुंदन सा पावन मन,
गूंथ देते थे जब पलाश के फूल
मेरी कच (चोटी) वेणी में-
फिर मैं! टेसू उठा- उठा कर
तुम पर! बरबस फेंका करती,
फिर,झट से टेसू के सब फूल
तुम मुझ पर डाल दिया करते,
फिर भूमि से चुन चुन कर फूलों से
मेरी डलिया को भरा करते,
जो, रूठती मैं! तो, मनाते तुम!
यदि, रोती मैं! तो, हंसाते तुम!
फिर से, औचक! तुम! आ कर के,
अहसास वही दे जाओ ना-
सुनो! वसंत आ गया है।
तुम भी! आ जाओ ना-
मखमली, केसरी ये पलाश
जैसे हों तेरे गर्म श्वास,
आम्र मंजरी मदमाती
सौरभ वातायन से आती
मदहोशी सा, घोल रहा,
पपीहा पीपल पर बोल रहा।
महुआ मद में बौराया है,
यौवन वसंत पर छाया है,
मन पाती पढ़, तुम आ जाते
मन बरबस यूं ही हर्षाते-
दिन ढ़लने लगा,अब हुई सांझ,
देखो, अब तो आ जाओ ना-
सुनो!
वसंत आ गया है- तुम !भी आ जाओ ना।।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश )