(कविता) वक्त नहीं……
नोट-* आज के युग में सभी के पास सबकुछ है, नहीं है तो वह है वक्त!
आज की मेरी कविता वक़्त पर आधारित है-
वक्त नहीं किसी से प्यार जताने का,
वक़्त नहीं किसी अपने रूठे को मनाने का।
वक़्त नहीं मनुहार करने-कराने का,
वक़्त नहीं कसमें वादे -निभाने का।
वक़्त नहीं किसी गैर को अपना बनाने का,
वक़्त नहीं अपनों से अपनापन जताने का।
वक़्त नहीं मां-बाप से दो बातें करने का,
वक़्त नहीं पत्नी से सुख -दुःख कहने का।
वक़्त नहीं बच्चों को पुचकारने का,
वक़्त नहीं दोस्तों को पुकारने का ।
वक़्त नहीं दो घरी हंसने -बोलने का,
वक़्त नहीं अपनों का अपनत्व तोलने का।
वक़्त नहीं प्रकृति के साथ होने का,
वक़्त नहीं राग-विराग में खोने का।
वक़्त नहीं दूरियों को पाटने का ,
वक़्त नहीं सुख – दु:ख बांटने का।
वक़्त नहीं किसी एक प्रेयसी संग खो जाने का,
वक़्त नहीं प्रेयस संग बतियाने का ।
वक़्त नहीं बुजुर्गों की कथा सुनने का,
वक़्त नहीं दुखियों की व्यथा सुनने का।
वक़्त नहीं किशोरों को समझाने का का,
वक़्त नहीं प्रौढ़ों संग रीझने का ।
वक़्त नहीं किताबों को पढ़ने का,
वक़्त नहीं ग्रंथों को गढ़ने का।
वक़्त नहीं रिश्तेदारी निभाने का,
वक़्त नहीं दुनियादारी सिखाने का।
वक़्त नहीं प्रभु को स्मरण करने का,
वक़्त नहीं स्वतत्व में विचरने का।
*आर्यावर्ती सरोज “आर्या”*
*लखनऊ (उत्तर प्रदेश)*