Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

शब्द

चमकती है चांदनी सी चेहरे की नूर उसकी,
महकती है इत्र की खुशबू मीलों दूर उसकी।

बज़्म में रौनक बढ़ जाती है आने से उसके,
हृदय और जेहन को रिझाती हैं हूर उसकी।

समंदर सा गहरा है बातों की रूमानियत,
जन्नत सी लगती है होठों की मुस्कान उसकी।

फलक सा व्यापक है संस्कारों का स्वरूप,
प्रभंजन सा है हृदय से प्रीति उसकी।

यूं ही शब्दों के कल्पना में जीता हूं जिंदगी,
“आशीष” ऐसी है ज़िंदगी की फितरत उसकी।

आशीष प्रताप साहनी
भीवा पार भानपुर बस्ती
उत्तर प्रदेश 272194
8652759126