Tuesday, June 4, 2024
साहित्य जगत

यादों के झरोखों से

यादों के झरोखों से
झांकती वो चंचल स्मृतियां
बासंती बयार बन….
शरद पूर्णिमा की
सुधा रस बन……
अमरत्व की श्रृंखला में
जुड़ती सी कुछ कड़ियां
ज्योत्स्नामयी शीतल
शीत सी चांदनी……
अमीय रस पान करती
देवों की नगरी में…..
पहाड़ों के पंख रूपी
बन बादल…..!!
उमस भरी गर्मी में
ठंडी फुहार बन….
उमड़ते-घुमड़ते मेघ की
स्मयमान प्रक्षालन हेतु
खोले रखना खिड़कियों
के पाट…!!
जिससे कि प्रस्थित हो सके
कल-बेकल स्मृतियां..
चहुं ओर से……
जिसे समेट सकूं
सहेज सकूं…..
उम्र भर के लिए…
स्मृतियों को हृदय
के संदूक में….!!!

आर्यवर्ती सरोज आर्या

लखनऊ (उतर प्रदेश)