Monday, May 20, 2024
साहित्य जगत

प्रेम

प्रेम है तृप्ति, प्रेम है तृष्णा,
प्रेम है राधा प्रेम कृष्णा।

प्रिये विरह की अग्नि भी लागे,
गोपिन के उधव कंज पत्र लागे।

प्रेम यशोदा की ममता सवारे,
प्रेम पांचाली की लाज बचावे।

प्रेम सूर है, प्रेम है मीरा,
है प्रेम जगत का आधार कबीरा।

है प्रेम पार्थ की प्रचंड शक्ति,
है प्रेम सुदामा की अखंड भक्ति।

प्रेम जीत है, प्रेम गीत है,
प्रेम जगत का परम गीत है।

डॉ श्रद्धा त्रिपाठी
(एमबीबीएस)
पीजीआई आजमगढ़