Saturday, September 14, 2024
साहित्य जगत

ग़ज़ल

काशः महसूस, तुम किये होते
प्यार के हमसे, सिलसिले होते।
दिल में मुझको, पनाह दी ही क्यों
राय मेरी भी, कुछ लिये होते।
ज़िस्मे नाज़ुक को, छू दिया यूं ही
हाथ शबनम से, धो लिये होते।
फूल तितली के, दरमियां जैसा
प्यार वैसा ही, तुम किये होते।
आज महफिल, उदास है जानम
तुम जो होते, तो कहकहे होते।
जो न गुलशन, उजाड़ता आतिश
बात फूलों से, कर रहे होते।
आतिश सुल्तानपुरी