Sunday, April 28, 2024
साहित्य जगत

****मै सरोज हूँ ***

हर पल कर्मपथ पर

पग पग चली हूँ
तूफानों में ज़िन्दगी के
दिया बन जली हूँ
ज़िन्दगी और मौत के बीच
एक दीवार बन खड़ी हूँ
ज़िन्दगी से पहले और ज़िन्दगी के बाद
बड़ी हिम्मत से लड़ी हूँ
ज़िन्दगी के शूलों में
मुस्कराती सरोज हूँ
हाँ , मै सरोजहूँ १

हाँथ उठते हैं मेरे मौत से लड़ने में
तूलिका से कल्पना शब्द रचने में
मै ढलती रही पिघलती रही मोम सी
चाँद पूनम की बनती रही अंधेरों में
उजास बन आँखों में सबके जीती रही
मुस्कान बन हर सुबह सरोज खिलती रही
बेदर्दी , बेदिली, बेईमानी को मारती रही
मै एक कवित्री के हाँथ बन सृजन के साथ
सबकी ज़िन्दगी सवांरती रही ,
हर पल जीने की अनुपम ओज हूँ
हाँ, मै सरोज हूँ |

मेरा हर पल करून क्रंदन भरा
पर मन का मधुबन हरदम खिला
पग पग पर ज़िन्दगी के देखती हूँ
अजब सा मौत का चौराहा
जीता है वही ज़िन्दगी को
जिसका मन कभी ना हरा
मृदुभाषी ,मै स्नेह अभिलाषी हूँ
विदुषी जीवन की बाती हूँ
गम के अंधेरो में रोशनी हूँ
ज़िन्दगी की हर सुबह में
कीचड में सरोज हो खिली हूँ
हाँ, हर पल मै पग पग पर
गम में भी मुस्कराते हुए
ज़िन्दगी और मौत से मिली हूँ
मै जिवंत जीवन शोध हूँ
मै सरोज हूँ ………………सरोज

आर्यावर्ती सरोज