Saturday, May 18, 2024
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कवि सम्मेलन, सारस्वत सम्मान समारोह में मेधावी छात्रों को मिला दुर्गेश कुमार मिश्र स्मृति सम्मान

 

ले संदेशा प्रणय का आया है मधुमास, प्यास बुझाने जा रही नदी सिंधु के पास

बस्ती । निराला जयन्ती और बसन्तोत्सव के उपलक्ष्य में दुर्गेश कुमार मिश्र सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थान द्वारा कवि सम्मेलन और सारस्वत सम्मान समारोह का आयोजन प्रेस क्लब सभागार में वरिष्ठ कवि डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी दीपक की अध्यक्षता और डा. रामकृष्ण लाल जगमग के संयोजन एवं संचालन में किया गया।

इस अवसर पर संस्थाध्यक्ष डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र द्वारा इंजीनियर दीपक कुमार मिश्र के सौजन्य से प्रसिद्ध कवि डा. सुरेश उजाला को अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र, श्रीफल एवं 11 हजार रूपये का नकद पुरस्कार तथा 8 चयनित मेधावी छात्र-छात्राओं को दुर्गेश कुमार मिश्र की स्मृति में दो-दो हजार रूपये का पुरस्कार देकर उत्साहवर्धन किया गया।
संस्थान के अध्यक्ष डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र ने कहा कि समाज की संरचना में साहित्यकार मजबूत कड़ी है। उन्हें पर्याप्त मान सम्मान मिले और किसी छात्र के मार्ग में धन का संकट बाधा न बने इस उद्देश्य से दुर्गेश कुमार मिश्र की स्मृति में जो सम्मान का क्रम चल रहा है प्रयास होगा कि आने वाले वर्षो में उसे और विस्तार मिले।

इस अवसर पर जगन्नाथ सिंह, सत्येन्द्रनाथ ‘मतवाला’ डा. वी.के. वर्मा, त्रिपुरारी मिश्र, परशुराम मिश्र, वृहस्पति पाण्डेय, सोनिया सहित अन्य विभूतियों को सम्मानित किया गया।

इसी कड़ी में वृहस्पति पाण्डेय एवं स्नेहा पाण्डेय के संपादन में प्रकाशित कृति ‘ महावर’ का लोकार्पण किया गया।
कवियत्री डा. सत्यमवदा सत्यम द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती की वंदना से आरम्भ कवि सम्मेलन में अनेक कवियों ने काव्य पाठ किया। डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी के शेर ‘ तेेरे अंगों को छू करके महक जाते हैं सब गहने, न तो चांदी महकती है न तो कंचन महकता है’ के द्वारा बसंत की अभिव्यक्ति दिया। विनोद उपाध्याय की रचना ‘ हमारी याद में आंसू बहा रहा है कोई, नजर से दूर है लेकिन बुला रहा है कोई’ को सराहना मिली। डा. सुरेश उजाला की रचना ‘ आपस में तकरार करो मत, कभी किसी से रार करो मत, मजबूरी में किसी शख्स को मरने पर लाचार करो मत’ के द्वारा मानवता का संदेश दिया। प्रख्यात कवियत्री डा. सत्यमवदा ‘सत्यम’ की रचना ‘ बेटी समझकर कोख में मारा गया मुझे’ और ‘मैं भारत की लड़की हूं’ जिस सांचे में ढाला जाये, उस सांचे में ढलती हूं’ ने मंच को ऊंचाई दी। डॉ. राम कृष्ण लाल जगमग ने जहां हास्य व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से लोगों को हंसाया वहीं गंभीर रचनाओं के माध्यम से श्रोताओं को सोचने पर बाध्य किया ‘ ले संदेशा प्रणय का आया है मधुमास, प्यास बुझाने जा रही नदी सिंधु के पास’ इसे काफी सराहना मिली। वी.के. वर्मा की रचना ‘ कोरोना का अंत आ गया, वर्मा आज बसन्त आ गया’ ने नवीन संदेश दिया।

इसी कड़ी में डा. राम मूर्ति चौधरी, सागर गोरखपुरी, पंकज कुमार सोनी, स्नेहा पाण्डेय, शबीहा खातून, रहमान अली रहमान, परमात्मा प्रसाद निर्दोष, रामचन्द्र ‘राजा’ दीदार वस्तवी, अनन्या कर्ण, राजेश मिश्र, विशाल पाण्डेय, सुशील सिंह, जय प्रकाश गोस्वामी आदि ने वर्तमान संगति, विसंगतियों पर रचनायें प्रस्तुत किया।


कार्यक्रम में मुख्य रूप से श्याम प्रकाश शर्मा, मो. वसीम अंसारी, डा. दशरथ प्रसाद यादव, ओम प्रकाश नाथ मिश्र, प्रभात कुमार मिश्र, डा. के.के. शुक्ल, धर्मेन्द्र पाण्डेय, हरि नारायण मिश्र, दिनेश सिंह, रामदत्त जोशी, कुलदीप सिंह, आशा पाण्डेय, अनुराग कुमार श्रीवास्तव, महेन्द्र तिवारी के साथ ही बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।