Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

रावण सबके है भीतर

रोको अब रावण को जलाना,
अनंत के रावण को मारो ।
दहक रहा जो लहक रहा जो,
बोलो उसे जलाओगे कब…?
पुतले में रावण न मिलेगा
रावण तेरे भीतर है।

यदि ऐसा ना होता तो,
नारी,ना होती भयभीत यहां,
बेटी की आबरू ना लुटती,
ना ही,आकर यहां बिलखती।
अपनी कुदृष्टि को संभालो,
सम दृष्टि तेरे भीतर है।

सबको सोने की लंका को,
बस पाने की चाह रही।
अंतस की वासनाओं की,
कोई सीमा कोई थाह नहीं।
करो नियन्त्रित इच्छाओं को,
शक्ति समष्टि भीतर है।

इन्द्र देव ने दिखा दी आज,
अब आ जाओ तुम भी बाज़।
पुतले जला न जश्न मनाओ,
खत्म कर अंतस की बुराई,
तब निभाओ रश्मों रिवाज।
विजय करो स्वयं के ऊपर,
रावण छिपा है सबके भीतर।।

भीतर के रावण को पहले
दहन करो !फिर !तब,
, मनाओ विजय दशमी,
नारी का सम्मान करो !फिर!
घर आएंगी,चलकर लक्ष्मी ।
अहंम दहन हो जाएगा,
भस्म शेष ना हो भीतर।
रावण सबके है भीतर।।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)