Saturday, May 11, 2024
साहित्य जगत

बालिका दिवस पर विशेष

घर -घर की फुलवारी मुस्कुराती,

जब बेटियां मुस्कुराती हैं…!
आंगन की सारी बगिया खिलखिलाती है,
जब बेटियां खिलखिलाती हैं..!
गुंजित हो जाए उपवन की हर डाली,
जब बेटियां चहचहाती हैं…!
सुरभित हो जाए मधुबन का हर माली,
जब बेटियां गमगमाती हैं…!
सींचते माता -पिता अपने संस्कारों से,
बेटियां पुष्पित -पल्लवित हो जाती हैं..!
घर आंगन की क्यारी को..,
केसर सी महकाती हैं……….!
छोड़ मात- पिता का घर,जब पी के घर को जाती हैं,
घर के कोने -कोने को अक्सर याद बहुत आती हैं..!
छोड़ उपवन,कर सूना वन चिड़ियों सी उड़ जाती हैं!
जब बेटियां ससुराल चली जाती हैं,,
हां, जब बेटियां ससुराल चली जाती हैं,,
सारी चंचलता,सारी मुस्कुराहट,सारी हंसी
छोड़ कर बाबुल के घर, देहरी पर ही दफन कर जाती हैं।
जब बेटियां ससुराल चली जाती हैं,, हां,जब बेटियां…..,,
ओढ़ गम्भीरता की चुनरी,धर- धैर्य का आंचल,
बांध सब्र की चोटी, थाम मौन का दामन,
एक नया रूप धर,जब वो न ए घर में जाती हैं ,,
जब बेटियां ससुराल चली जाती हैं,, हां,जब….
घर में भाई से लड़ना, वहां देवर का सम्मान करना,
बहन से झगड़ना,ननद को लाड करना,ननद के नाज़ सहना,
जाने कहां से सीख जाती हैं,जब बेटियां ससुराल चली जाती हैं,,
मां से रूठ जाना, सुबह देर से जगना, पिता आगे ज़िद करना,,
वहां सुबह उठना,सास- श्वसुर की सेवा करना और सारे हठ भूल जाना…….,,,,,

ये सारी समझदारी जाने कहां से सीख आती हैं,,?
जब बेटियां ससुराल चली जाती हैं,
हां जब बेटियां ससुराल चली जाती हैं।।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश)