Thursday, June 6, 2024
बस्ती मण्डल

राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है-संजय द्विवेदी

बस्ती। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर के राष्ट्रीय सेवा योजना के तत्वाधान में स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर युवा दिवस के अंतर्गत ” युवा,सेवा और स्वामी विवेकानंद” विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान देते हुए भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली के महानिदेशक एवं पूर्व कुलपति प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही हैं । स्वामी विवेकानंद ने युवाओं कि उस भूमिका को पहचानते हुए भारत को भारत से परिचित कराया । उन्होंने युवाओं में राष्ट्रीय चेतना और भारतीय अस्मिता को जगाया । उनका स्पष्ट मत था कि त्याग और सेवा ही हमारे मूल आदर्श हैं ।दीन दुखियों गरीबों की सेवा करना ही सबसे बड़ा पवित्र कार्य है। वास्तव में जाति बैद्य थे, जिन्होंने समाज की समस्याओं को पहचाना और उसका समाधान करने का मार्ग प्रस्तुत किया ।उन्होंने युवाओं के अंदर शक्ति,शीलऔर सेवा की भावना जागृत करने का जो भागीरथ चिंतन दिया है वह आज भी अनुकरणीय है ।शक्ति का अर्थ युवाओं की शक्ति से है। शील का अर्थ है समाज का चरित्र अर्थात शिक्षा और व्यवहार इस प्रकार का हो जिसमें चरित्रवान समाज का निर्माण हो और सेवा सेवा पर उनका हमेशा बहुत ध्यान रहता था सेवा ही सच्ची तपस्या है। उन्होंने इस बात पर हमेशा बल दिया कि सामाजिक समानता के साथ समाज उत्थान किया जाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद भक्ति, पवित्रता और बलिदान पर आधारित था। भारतीय चिंतन विचारों की निरंतरता पर बल देता है। अस्तव में उनका सामाजिक आदर्श की अवधारणा गीता का कर्म योग है ।उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन का मूल मंत्र भी वास्तव में समाज सेवा ही है। समाज सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है ।विचार की स्वतंत्रता ही मूल स्वतंत्रता है।इसी से व्यक्ति के अंदर आत्म चेतना आत्मबोध आत्म गौरव की स्थापना होगी और वही राष्ट्र के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करेगा ।इसलिए बहुत आवश्यक है कि युवाओं में कर्तव्य पालन का बोध हो, त्याग की भावना हो ,सामाजिक दायित्व निर्वहन करने का विचार हो। जिस प्रकार से समाज के प्रति स्वामी विवेकानंद का चिंतन है । उसकी आंध्र भूमि पारिवारिक संवेदना से ही सामाजिक संवेदना का मार्ग दिखाता है ।हम सबको इस बात का ध्यान है कि जब एक समय में उनके परिवार में विभिन्न प्रकार के संकट आए थे तब भी एक बालक के रूप में जिस संवेदना का परिचय दिया वह विवेकानन्द के होने का अभास उसी समय कर दिया था और आगे चलकर वही विवेकानंद राष्ट्र निर्माण के शिल्पी बने । समाज निर्माण में वही पारिवारिक संवेदना का भाव जो सामाजिक सम्वेदना में परिवर्तित हो गया ।इस बात का भी ध्यान है कि जब कोलकाता में प्लेग महामारी आई थी उस समय उन्होंने राष्ट्र सेवा का संकट के काल में सेवा का बहुत बड़ी योजना बनाई थी और उसके लिए उन्होंने कहा था उसके प्राप्ति के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना के लिए जमीन को हम लोगों ने लिया है उसको बेचकर मानव सेवा किया जाना चाहिए। इस दृष्टि से तात्कालिक सामाजिक सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है और सेवा ही जीवन का मूल है। मानव सेवा को स्वामी विवेकानंद ने प्रथम स्थान दिया है। स्वामी विवेकानंद और श्रीमद्भगवद्गीता दोनों एक दूसरे के अंतरंग हैं ।जहां श्रीमद्भगवद्गीता कर्म और कर्म बोध का प्रतीक है वही स्वामी विवेकानंद एक कर्म योगी के रूप में भारतीय युवाओं के मन मस्तिष्क पर आज भी चमत्कृत है। स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन को स्थापित करने वाले वास्तव में राष्ट्र नायक है ।युवा सन्यासी के रूप में स्वामी विवेकानंद आज न केवल भारत में बल्कि संपूर्ण विश्व के युवाओं के प्रेरणा पुरुष के रूप में स्थापित है ।अपने अल्प आयु में भी उन्होंने जितना बड़ा प्रभाव और जितना व्यापक क्षेत्र लिए हुए चिंतन दिया है वह भारतीय इतिहास में और भारतीय महापुरुषों के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। सही मायने में भारत और उसके आध्यात्म पुरुषार्थ और वसुदेव कुटुंबकम की भावना को स्थापित करने वाले महानायक हैं। उन्होंने अपने विचारों से गुलामी के कालखंड में जिस प्रकार से युवाओं को जागृत किया है वह अनुकरणीय है । स्वामी विवेकानंद के परंपरा और आधुनिकता का एक साथ समन्वय करने वाले कर्ता के रूप में सर्व व्याप्त है ।राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका और उन्हें मार्ग दिखाने वाले सच्चे अर्थों में राष्ट्र गुरु है ।
आभार ज्ञापन कुलपति प्रो दुबे ने तथा कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना समन्वयक डॉ पूर्णेश नारायण सिंह ने किया । इस अवसर पर विश्वविद्यालय सहित सम्बद्ध महाविद्यलयों के शिक्षक , विद्यार्थी ऑनलाइन सहभगिता किये ।