Sunday, May 19, 2024
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बेटी

लाओ वह नव रीति जगत में,पले बेटियां,बढ़े बेटियां।
अधरों पर मुस्कान लिए हर घर में,फूलें फले बेटियां।

बेटी से घर में उंजियारी,
दो कुल की हैं जिम्मेदारी।
सृष्टि रचयिता पालक है ओ
घर में जैसे बालक है ओ
उसे गोद में पुलक उठाओ
माथे का है तिलक लगाओ

उनका दो अधिकार उन्हें सब स्कूलों में पढ़े बेटियां।
अधरो पर मुस्कान लिए हर घर में फूलें फलें बेटियां।

नव युग आया नया जमाना,
थोड़ा सा उनको अजमाना।
कर देती है काम असंभव।
उनसे घर में बरकत वैभव।
दर्द हजारों पी लेती हैं।
कर समझौता जी लेती हैं।

हे नवयुग के प्रहरी जागो निर्भय हो अब चलें बेटियां।
अधरो पर मुस्कान लिए हर घर में फूलें फलें बेटियां।

कब तक यूं काटोगे गर्दन?
मर्यादा का करके मर्दन।
कितनी अभी और निर्ममता?
भोगेंगी जग की निष्ठुरता ।
सितम कहां तक सह पाएंगी?
कहां बेटियां रह पाएगी?

इस दहेज की बलि वेदी पर अब न कोई जलें बेटियां।
अधरों पर मुस्कान लिए हर घर में फूलें फलें बेटियां।

सीमा शुक्ला
अयोध्या(उत्तर प्रदेश)