गजल
दिल का बढाहै दर्द उन्हें कुछ ख़बर नहीं ।लगता है मेरे प्यार का उन पे असर नहीं।।
रुठा हुआ है जब से मेरे दिल का हमसफ़र। दिल को लगे हैं जैसे की होगी सहर नहीं ।।
खाली पड़े मकान अमीरों के हैं यहां।कितने हैं बदनसीब कि रहने को घर नहीं।।
डर-डर के चल रहा है मुहब्बत की राह पर ।जैसे कि इश्क़ का है उसे कुछ हुनर नहीं।।
लव थरथराते करते हुए बात है मगर।हर्षित के सामने तेरी उठती नज़र नहीं।।
विनोद उपाध्याय हर्षित
अध्यक्ष
प्रेस क्लब बस्ती