Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

उसे बहुत खुशी मिली

उसे बहुत खुशी मिली…
जब मैने उसे गले लगाया
उससे प्यार जताया….
उसके जख़्मों को सहलाया
उसे बहुत खुशी मिली,
जब मैने उसके दर्द पर
मरहम लगाया………….
बुढ़ी हो चुकी उस काया से
जब अपनापन जताया
सूनी आँखें जब तलाश
रहीं थी अपनों को ……
उसके अपने जब लिप्त थे
भौतिक दुनियाँ में …..
चौंधियाँ गईं थी उनकी आखें
अपने सुख -सुविधा ही जब
अनिवार्य थे उन्हें…….
इस कँपकँपाती सर्दी में जब
मैंने उन्हें कम्बल ओढ़ाया।
उसे खुशी मिली जब…
उसकी काँपती हथेलियों को
थाम अपनी हाथो में….
उसे ढ़ाढ़स बधाया
थपकी दे उसे सुलाया
रूई सी नर्म ख्वाबों में
जब वो विचरण करने लगी
नींद आँखों में जब लोरियाँ
सुनाने लगीं……………
उसे खुशी मिली जब
मैं उसके बुढ़ापे की लाठी बनी।।

*लसरोज तिवारी आर्यावर्ती
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)