Thursday, July 4, 2024
साहित्य जगत

कौन ग़म में जिया नहीं करता…..

कौन ग़म में जिया नहीं करता
होंठ अपने सिला नहीं करता

दर्द कुछ तो छुपा है सीने में
अश्क वैसे बहा नहीं करता

कहने को लोग मेरे हैं लेकिन
कोई मैं आसरा नहीं करता

दाग़ चेहरे का वो दिखाता है
आइना तो डरा नहीं करता

उनको मुझसे तमाम शिकवा है
मैं तो लेकिन गिला नहीं करता

बात कुछ तो ज़रूर है उसमें
कोई वैसे मिटा नहीं करता

वक्त तो ग़ामजन है ऐ सागर
वो कहीं भी रुका नहीं करता

वीपी श्रीवास्तव

सागर गोरखपुरी

बस्ती (उत्तर प्रदेश)