Thursday, July 4, 2024
साहित्य जगत

धीरे-धीरे कट जाती है…..

धीरे-धीरे कट जाती है उम्र अपनाने में
फैले-फैले ख़्वाहिशों के समुंदर सिझाने में।

कभी-कभी किसी की सिक्त यादों के घरोंदों में
कट जाती है ज़िंदगी यादों के तड़फाने में।

कब आए सागर के अनमोल खज़ाने किनारे
पुराने जिगरी दोस्त फिर कहाँ मिलते जमाने में।

साथ रहें तो अच्छा है यादों के जमाने में
कब हो जाए शाम ज़िंदगी के शामियाने में।

यादों का नशा ही मोहब्बत में नहीं सब कुछ
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती मयखाने में।।

 

-डॉ बीना राघव

गुरुग्राम (हरियाणा)